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दरअसल, देश में मासूमों के साथ बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, फिर वीभत्स तरीके से हत्या कर यहां-वहां फेंक देना, फिर आरोपियों को बचाने की कोशिश, मामले की जांच के नाम पर लीपा-पोती, आरोपियों के समर्थन में खड़ी भीड़...ये आज की ऐसी हकीकत बन गई है जिसने हर संवेदनशील इंसान को अंदर से झकझोर कर रख दिया है। इंसान की ऐसी हैवानियत की हैवान और जानवर को भी शर्म आ जाए। मासूमों के साथ हैवानियत की बातें यहीं खत्म नहीं होती।
बदजुवान नेता- मर्द-मंत्री-प्रशासनिक अधिकारी तो इन सबके लिए बेटियों, महिलाओं को ही जिम्मेदारी ठहरा देते हैं और साबित कर देते हैं कि मर्द भले ही बलात्कारी हो, हम मर्दों का ही साथ देंगे। उनके अजीब-अजीब बयान सुनकर आपको कोफ्त होगी। ऐसे लोग इंसान कहलाने के भी लायक नहीं हो सकते हैं। महिलाओं को सुरक्षा देने का आश्वासन सरकारें तो देती है लेकिन कहीं अमल होता नहीं दिखता। दरअसल, जब घर से ही बेटियों को दोयम दर्जा का मान लिया जाएगा, तो भला जब उस पर संकट आएगी, तो कौन साथ देगा? इसलिए, बेटियों को खुद ही बहादुर बनना होगा।
मेरा दूसरा कविता संग्रह 'बिटिया, तुम बहादुर ही बनना' हर मां, हर बेटी, हर बहन, हर महिला को समर्पित है। मेरा
पहला कविता संग्रह है "जब सपने बन जाते हैं मार्गदर्शक", जिस पाठकों का अप्रतिम प्यार मिल रहा है। मुझे उम्मीद
है कि मेरा दूसरा कविता संग्रह भी पाठकों में उसी तरह का प्यार जगाने में कामयाब होगा। पैसों से पैसा बनाने की कला
समझने के लिए भी हिन्दी मैंने दो किताबें लिखी है-आपका पैसा, आप संभालें और बेटा हमारा दौलतमंद बनेगा।
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