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उस दिन मई की दोपहर थी। बाहर सूरज ज़मीन पर चाबुक बरसा रहा था, और मैं 22 डिग्री तापमान वाले अपने छोटे से एसी वाले कमरे में बैठा सोच रहा था— "कितनी सुंदर बात है कि हम एक बटन दबाकर गर्मी से बच सकते हैं!"
पर फिर, खिड़की से बाहर देखा— सड़क पर एक बुज़ुर्ग रिक्शाचालक तपती धूप में धीरे-धीरे चल रहा था। उसके माथे से बहता पसीना मेरे भीतर तक कुछ पिघला गया।
क्या वह भी ठंडी हवा का हकदार नहीं?
इस सवाल ने इस पूरी किताब को जन्म दिया।
यह किताब एयर कंडीशनर की तकनीक पर केंद्रित नहीं है। यह एक गहरी यात्रा है — उस हवा की जो कभी पेड़ों से आती थी, अब मशीनों से आती है।
यह एक दर्पण है, जो आपको, मुझे, हम सबको यह दिखाता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। और अगर समय रहते हमने अपने रास्ते नहीं बदले, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए 'ठंडी हवा' कोई उपलब्ध सुविधा नहीं होगी — वह एक सपना बन जाएगी, जिसे वे कहानियों में पढ़ेंगे।
पढ़िए इस पुस्तक को और जानिए कि आखिर क्या है ठंडी हवा की असली कीमत!
जब आप इस किताब के अध्यायों में प्रवेश करेंगे, तो आप पाएँगे कि ठंडी हवा की कीमत केवल रुपयों में नहीं है— यह उससे बहुत अधिक है।
मुझे यह पसंद आया कि यह सिर्फ एक तकनीकी पुस्तक नहीं है, बल्कि इसके पीछे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भों को भी शामिल किया गया है। एक प्रभावशाली कृति!
इस पुस्तक ने मुझे एयर कंडीशनिंग के पीछे छिपे वैज्ञानिक और पर्यावरणीय प्रभावों को समझने में मदद की। शानदार शोध और स्पष्ट भाषा इसे एक ज़रूरी पाठ्य सामग्री बनाते हैं।
इस पुस्तक में एयर कंडीशनिंग के विकास और इसके पर्यावरणीय प्रभाव को बारीकी से समझाया गया है। लेखक ने विषय को बेहद रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है।
अत्यंत व्यावहारिक और सोद्देश्य
यह पुस्तक न केवल जानकारी देती है बल्कि हमारे भविष्य के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठाती है! बेहतरीन लेखन।