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जीवन को अगर एक यात्रा समझा जाय, तो ये यात्रा, बाल्यकाल से बृद्धावस्था तक, कई मोड़ो से गुजरती है। इन सभी मोड़ो पर हमें, जीवनयापन हेतु, क्या क्या करना पड़ता है, या हमसे क्या क्या कराया जाता है, या हम खुद क्या क्या करना पसंद करते हें, इसका जीवन पर बहुत बड़ा असर पड़ता है। बाल्यकाल से ही अगर इसके चित्रण का पुनरावलोकन किया जाय तो मन को अच्छा लगता है.
कहा जाता है कि, हम जो कर डालते हें या करने की सोचकर छोड़ देते हैं, उन दोनों में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। उदाहरण के तौर पर, यदि हम किसी ब्यक्ति की भलाई करना चाहते हें और कर भी देते हैं, तो हम पुण्य के हक़दार हें। हाँ, लेकिन हम सच्चे मन से सोचते हें लेकिन कारणवस् कर नहीं पाते हें, तो भी हम पुण्य के ही हक़दार रहेंगे. इसके विपरीत, यदि हमारे हाथ से कोई कुकृत्य...
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