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जीवन को अगर एक यात्रा समझा जाय, तो ये यात्रा, बाल्यकाल से बृद्धावस्था तक, कई मोड़ो से गुजरती है। इन सभी मोड़ो पर हमें, जीवनयापन हेतु, क्या क्या करना पड़ता है, या हमसे क्या क्या कराया जाता है, या हम खुद क्या क्या करना पसंद करते हें, इसका जीवन पर बहुत बड़ा असर पड़ता है। बाल्यकाल से ही अगर इसके चित्रण का पुनरावलोकन किया जाय तो मन को अच्छा लगता है.
कहा जाता है कि, हम जो कर डालते हें या करने की सोचकर छोड़ देते हैं, उन दोनों में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। उदाहरण के तौर पर, यदि हम किसी ब्यक्ति की भलाई करना चाहते हें और कर भी देते हैं, तो हम पुण्य के हक़दार हें। हाँ, लेकिन हम सच्चे मन से सोचते हें लेकिन कारणवस् कर नहीं पाते हें, तो भी हम पुण्य के ही हक़दार रहेंगे. इसके विपरीत, यदि हमारे हाथ से कोई कुकृत्य हो जाय तो हम पाप की भागीदार बन जाते हें। यहाँ पर भी, यदि हमने कुकृत्य किया नहीं, लेकिन अगर मस्तिस्क में सोच भी लिया तो यह पाप भागीदारी कम नहीं होने वाली।
अपनी इस रचना में, मैंने, इसी बात का उल्लेख किया है. जब हम पैदा होते हें तो हमें सांसारिक मूल्यों, सामाजिक मुद्दों, इत्यादि के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है. बड़ते उम्र के सांथ ही हम ये सारी चीजें सीखते हें. संग संग, प्रत्यक्ष यर अप्रत्यक्ष रूप से हम और जो भी कर्म करते हें, हम उसके फल के हक़दार बन जाते हें। हम जाने अनजाने में बहुत सी ऐसी चीजें सोच लेते हें, जिनका खुद हमें कुछ समय पश्चात ही पछतावा होने लगता है। हाँ, कुछ चीजें ऐसी परिस्थितियां भी जीवन में घटती हें जब हम किसी मुद्दे को सोच के छोड़ देते हें, लेकिन बाद में पछतावा होता है कि हम उसे अंजाम तक क्यों नहीं ले गए।
मैंने एक सामान्य मानव के जीवन में घटने वाली घटनाओं को एक कविता संग्रह के रूप में क्रमबद्ध ढंग से दर्शाने की कोशिश की है। आशा करता हूँ कि आप सभी को इसे पड़ने में आनंद की अनुभूति होगी।
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