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सह्पुरवा (eBook)

Prerna Publication
Type: e-book
Genre: Magazine/Periodical
Language: Hindi
Price: ₹220
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

'सहपुरवा' पूरी तरह एक छोटे गांव की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसका कालखंड वर्षों पूर्व के आपातकाल के समय का है। गांवों में दबंगों की दबंगई की अंतहीन सीमा, उनके शोषण तथा अत्याचार के बारे में बताया है कि जैसा वे चाहें, वे करते हैं, एक प्रकार से गांवों में उनका ही शासन चलता है। शासन किस तरह उनके आगे पंगु होता है और अधिकारियों को न चाहते हुए भी उनकी मनमर्जी के आगे नतमस्तक होना पड़ता है, इसका सजीव चित्रण है, भले ही सरकार की ओर से गरीबों दलितों को जमीन के पट्टे मिल गये हों और वे उस पर खेती करते हों परंतु यदि उनकी ओर से जरा भी ऐसा कुछ हुआ जो दबंगों को पसंद न आता हो तो येन केन प्रकारेण उस जमीन के पट्टे निरस्त करा दिये जाते हैं। ग्रामसभा व अधिकारी उनके आगे नियम, कानूनों को तोड़ मरोड़कर आत्मसमर्पण कर देते हैं और गरीबों, दलितों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं होता। उपन्यास का दबंग पात्र रामभरोस, सहपुरवा गांव का ठाकुर और प्रधान है। उसके आगे सभी जाति के लोग विशेषकर दलित डरे सहमें रहते हैं उसकी किसी भी बात का कोई विरोध नहीं करता। दलितों को वह बंधुआ मजदूर बनाकर अपने काम पर रखता है व उनकी महिलाओं का मनचाहा उपयोग करता है। अधिकांश इसी को नियति मानकर समझौता कर चलते हैं। जो कोई विरोध करता है, उसे अपने लठैतों से पिटवाता तो है ही अगर फिर भी न माना तो पुलिस से फंसवा देता है। औतार दलित का लड़का फेंकुआ गठीले बदन का कसरती जवान है, उसको इस तरह की गुलामी रास नहीं आती। उसके इन लोगों के प्रति कभी-कभी प्रकट हो जाने वाले आक्रोश से औतार चिंतित है और उसे बहुत वर्षों की वह दुखद घटना जिसे वह भूलना चाहता है पर भूल नहीं पाता फिर से ताजी हो जाती है कि किस तरह उसकी बेटी सुगिया जवानी की ओर बढ़ रही होती है, उसकी अल्हड़ता और सौंदर्य रामभरोस को विचलित कर देता है, पहले वह किसी न किसी तरह उसे फुसलाने का प्रयत्न करता है, जब असफल हो जाता है तब अपने आदमियों से उठवा लेता है, यह उसके लिए साधारण बात है। तीन दिन बाद जब सुगिया वापिस लौटती है, सब मौन साध जाते हैं। जाति की महापंचायत होती है, जिसमें उल्टे ही औतार को दंड स्वरूप जुर्माना लगाया जाता है पंचायत की धमकियों के आगे उसे झुकना पड़ता है। इसी तरह की कई अन्यायपूर्ण घटनाएं उनसे उपजता आक्रोश एवं संघर्ष उपन्यास में है संवाद आंचलिक भाषा में है उपन्यास पढ़ते समय पाठक पूर्ण रूप से उसी परिवेश में चला जाता है।

About the Author

वरिष्ठ लेखक रामनाथ शिवेन्द्र के अब तक पांच उपन्यास- सहपुरवा, हरियल की लकड़ी, तीसरा रास्ता, दूसरी आजादी, ढूह वाली लछमिनिया प्रकाशित व छठां शीघ्र प्रकाश्य- अन्तर्गाथा तथा दो कहानी संग्रह- दूसरी परम्परा, डफली बजाये जा एवं अन्य पांच पुस्तकें- सोनभद्र प्राचीन, समय समाज और हस्तक्षेप एवं समय और सपने प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके द्वारा 'असुविधा’ पत्रिका का प्रकाशन किया जाता है।

Book Details

Publisher: Prerna Publication
Number of Pages: 117
Availability: Available for Download (e-book)

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