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द्वंद्व की दुविधा: पूर्ति की तलाश
विक्रम साथी
मेरे प्रिय पाठकों
आभास
अंत में, मेडिकल कॉलेज
पिछली बार
प्रतिकूल समय
एक वर्ष के बाद
दो साल बाद
वापसी सामान्य की तरफ
एक नई सुबह
विक्रम साथी एक ऐसी कथा बुनते हैं जो सांसारिकता से परे जाकर इंसानी दिमाग की पेचीदगियों को उजागर करती है। नायक के अनुभवों के लेंस के माध्यम से, पाठकों को एक दर्पण की पेशकश की जाती है जिसके माध्यम से वे अपने जीवन के प्रतिबिंब को देख सकते हैं, खुद को नायक के स्थान पर रखकर घटनाओं की कल्पना करते हुए।
उपन्यास का शीर्षक, "द्वंद्व की दुविधा: पूर्ति की तलाश," मानव अस्तित्व के सार को समाहित करता है। जीवन के द्वंद्व, खुशी और दर्द, प्यार और दिल का दर्द, आशा और निराशा, वह मिश्रण बनाते हैं जिससे हमारी पहचान निकलती है। पूर्ति की तलाश की यात्रा, जो इन पन्नों में स्पष्ट रूप से चित्रित है, एक सार्वभौमिक खोज है जो हम...
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