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निराशा से फ़ूलों तक (दुखद प्रेम)
शलभ सिंह
निराशा से फ़ूलों तक (दुखद प्रेम)
कॉपीराइट
तालिका
दो शब्द
उस सुबह की देरी
मिस्टर घमंडी
काम का बोझ
उसकी डाँट फटकार
असमंजस
उपेक्षित
पाया फिर खोया
प्यार की कहानियाँ तो आपने बहुत सी पढ़ी होंगी, और उनमें से कुछ आज भी आपके दिमाग में ताज़ा होंगी! लेकिन कुछ कहानियाँ ऐसी भी होती हैं जो लकीर से हटकर होती है और पाठक के दिमाग में कुछ ज्यादा गहरा प्रभाव छोड़ जाती हैं।
हमारी ये कहानी भी कुछ इस तरह की ही है जो व्यावसायिक बहसों, नोक झोंक, से होती हुई हमारे नायक और नायिका को एक ही कंपनी में काम करते समय एक ऐसे मोड़ पर ले आती है जहां से सबकुछ एकदम पलट जाता है, और कहानी एक ऐसे अंत की तरफ बढ़ने लगती है जिसकी शायद कहानी पढ़ने के दौरान पाठक कल्पना भी नहीं कर सकता है...
शुभकामना
शलभ सिंह
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