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जन्म और भरण-पोषण (संपादकीय)
पिछले साल कोलकाता के रवीन्द्र सदन प्रांगण में लघु पत्रिका मेला (लिटिल मैगजीन) से इस प्रदेश में हिन्दी साहित्य के लघु पत्रिका के मरुस्थल में एक तृण 'मरुतृण' उगाने की सोच उत्पन्न हुई थी इस आस के साथ कि "संभवत; और भी तृण इस मरु में उग आयें। इस बार उसी जगह 11 से 14 जनवरी, 2014 तक लघु पत्रिका मेला में प्रदर्शनी-समावेश का आयोजन हुआ था। बंगला के तमाम लेखकों के साथ हिन्दी के भी लघु पत्रिका के तीन स्टॉल लगे थे, ’साहित्य त्रिवेणी’, ’सदीनामा’ तथा ’मरुतृण साहित्य पत्रिका’। देखकर हृदय उत्साहित हुआ। पिछले साल की निराशा आशा की चिंगारी में बदलने लगी है। मरु में अब तृण उगते नज़र आने लगे हैं। आशा है कि अब इसमें दिन प्रतिदिन वृद्धि होगी। मगर इस लघु-पत्रिका-तृण की संख्या और समृद्धि में वृद्धि के लिए अर्थ की जरूरत को नकारा नहीं जा सकता। लघु पत्रिका पढ़ने के मामले में हमारा हिन्दी समाज बहुत ही पीछे है। और सहयोग राशि देकर पढ़ने में तो बहुत ही पीछे है। इस मामले में एक बहुत बड़ी सीख हमें कुछ बंगला के पाठकों से मिली। अधिक क़रीब के सहकर्मियों में से भी कुछ बन्धु हमारी पत्रिका का सहयोग राशि दे कर पढ़े। हम संकोचवश लेने से इनकार करते रहे, मगर उन्होंने स्नेहाधिकार से पत्रिका का सहयोग राशि देकर ही दम लिया यह कहते हुए कि ’तुम अगर सहयोग राशि नहीं लोगे तो यह पत्रिका तुरंत नहीं तो शीध्र हीं बन्द हो जाएगी’। तब हमें पत्रिका चलाने के लिए 10-15 रुपये का मूल्य समझ आया। हम तो यह समझते रहे कि अपनों से क्या सहयोग राशि मांगा जाए और अपने भी देने से संकोच करते रहे कि इन्हें क्या सहयोग राशि दिया जाए। फिर मुझे याद आया कि किसी अंग्रेजी साहित्यकार ने प्रथम पत्रिका निकाली तो उसके घर-परिवार के ही समस्त सदस्य पत्रिका का सहयोग राशि देकर पत्रिका ग्रहण किए थे। यहाँ हमें अनुरोध करते अति संकोच हो रहा है कि अधिकतर पाठक सहयोग राशि देने का कष्ट करें ताकि यह पत्रिका चलती रहे। साथ ही अपने पूजनीय, वरिष्ठ तथा मूर्धन्य साहित्यकारगण से सहयोग राशि का नहीं बल्कि उनका आशीर्वाद, मार्गदर्शन एवं रचनाओं की कामना करते हैं। लघु पत्रिकायें अपनी संतान तुल्य हैं। रचनाकार, संपादक तथा प्रकाशक यदि इनके जन्मदाता हैं जो अपने सेवा से इन्हें सींचते रहते हैं तो पाठक इनके संरक्षक हैं जो अन्य लोगों के समक्ष उनकी प्रशंसा करते हैं और उनके सामने उनका गुण-दोष का विवेचन करते हैं और साथ ही अपनी सामर्थ्य से उसका भरण पोषण करते हैं। ऐसी संतानों की वृद्धि एवं समृद्धि का हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।
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