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शुभ विचार आनंद अपार
इस परिवर्तनशील संसार में हर चीज प्रति पत्र बदल रही है। मनुष्य हर समय कुछ पाने के लिये, कुछ बनने के लिये प्रयत्नशील रहता है जो कि उसको जीवंत व उर्जित बनाये रखने के लिये आवश्यक भी है। पर ध्यान देने की बात यह है कि अगर मनुष्य की एक कामना पूर्ण हो जाती है तो उसे एक खालीपन का अनुभव होता है और वह फिर एक नयी कामना के साथ प्रयत्नशील होता है। यदि कामना पूर्ण न हो तो उसे दुःख भी होता है। यह सब हर मनुष्य अपने स्वअनुभव से अच्छी तरह से जानता और फिर भी उसका मन विचारों को अपना मानकर विचारों के अधीन हो कर एक विचार या कामना से दूसरी कामना पर छलाँग लगाता रहता है। पर कामना शब्द का अर्थ ही है - काम ना आये ।क्या व्यक्ति होशपूर्ण जीवन जीते हुये कामनाओं के भ्रमजाल से मुक्ति पा सकता है?
यदि एक सही समझ मनुष्य को मिल जाये तो वह अपनी शुभ ईच्छाओं की सहज पूर्ति कर सकता है और संतुष्ट भी रह सकता है। इस समझ को प्राप्त करने के लिये हमें अपने स्थूल शरीर व दृश्य जगत के ऊर्जा रूप को समझना होगा। विश्व के वैज्ञानिकों ने यह प्रतिपादित किया है कि मनुष्य शरीर का निर्माण सूक्ष्म कोशिकाओं के द्वारा हुआ है और हर कोशिका 99.9% space होती है व 0.1% ठोस होती है। अर्थात शरीर का मूल तत्व Space है। उर्जा है। तरंग है। इसी प्रकार एक दृष्य जगत भी,जो हम इंद्रियों के द्वारा ठोस अनुभव करते हैं, मूलरुप में उर्जा ही है। यह अनन्त ऊर्जा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है तथा हम सब उसमें डूबे व समाये हैं व एक दसरे से व सबसे उर्जा रूप से जुड़े हैं,अलगाव मात्र एक भ्रम है। जैसे एक शरीर के अलग अलग नाम के विभिन्न अंग उस शरीर के हिस्से होते हैं। इसी प्रकार इस दृष्य जगत में प्रकट हो रही हर वस्तु हमारी इंद्रियों द्वारा इसी ऊर्जा के प्रकटीकरण है। यह अदृश्य ऊर्जा आपके विचारों द्वारा संचालित की जा सकती है।
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