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गुरुदत्त की प्रसिद्ध फिल्म ‘प्यासा’ का नायक – विजय – एक शायर है लेकिन उसके अपने ही भाई उसकी कविताओं का मोल नहीं आँक पाते और उसकी हस्तलिखित कविताओं का पुलिन्दा किसी रद्दी वाले के यहाँ धेले के भाव बेच आते हैं। विजय किस्मत वाला था कि उसकी कविताओं की पांडुलिपि पर गुलाबो नाम की एक तथाकथित ‘वेश्या’ की निगाह पड़ती है जिसे शेरो-शायरी से प्रेम है, और वह रद्दी वाले से वह संकलन प्राप्त कर लेती है। लेकिन हर कवि, हर शायर, इतना खुशकिस्मत नहीं होता कि उसे कोई गुलाबो मिल ही जाए। कविता मन की एक स्वतःस्फूर्त अभिव्यक्ति है और इस दृष्टि से हर कोई कवि है क्योंकि हर हृदय में भावनाओं के ज्वार उठते हैं। अंतर बस इतना है कि कुछ लोग उस अभिव्यक्ति को सुन्दर शब्दों, अलंकारों, भावों की गहराइयों और आकर्षक छंदों में बांध देते हैं, और बहुत से लोग ऐसा नहीं कर पाते। बचपन और युवावस्था सुन्दर भावों और कविताओं के प्राकट्य के बसन्त-काल हैं। इस संकलन की कविताएँ मेरी 500 से भी अधिक कविताओं के भंडार से बची-खुची और स्मृतियों में अंकित कुछ गिनी-चुनी कविताएँ हैं। एक चिड़ी थी, एक निविड़ था ऐसी ही एक कविता है जो प्रेम और कर्तव्य के बीच फँसे मेरे जीवन की ही एक दास्तान है किंतु इस संकलन में और भी अनेक कविताएँ हैं जो आपको अच्छी लगेंगी ... क्योंकि उन्हें दिल से लिखा गया है, केवल कलम से नहीं। उन कविताओं में कहीं प्रेम की मधुरता भी है और कहीं उसकी वेदना भी। उनमें विद्रोह भी है और समर्पण भी। मुझे पूरा विश्वास है कि ये कविताएँ आपके भीतर छिपी ‘गुलाबो’ को कवि की भावनाओं के रंग-बिरंगे पटल से प्रेम करने में सक्षम बनाएँगी।
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