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कविताओं की गुंडागर्दी!!!!
चौंक गये ना!
सोच रहे होंगे कि कविताएं कैसे गुंडागर्दी कर सकती हैं!
अरे भाई कर सकती हैं, बहुत भयंकर गुंडागर्दी कर सकती हैं, करती हैं, करती आई हैं।कविताओं की गुंडागर्दी चलती रही और मैं पुस्तकों पर पुस्तकें प्रकाशित करता रहा। कविताओं की गुंडागर्दी मेरी इक्कीसवीं काव्य पुस्तिका है। ये कविताएं कैसी गुंडागर्दी करती हैं, आओ एक कविता ही के माध्यम से समझते हैं, कैसी होती है….. इन कविताओं की गुंडागर्दी....
"कविताओं की गुंडागर्दी"
कभी आधी रात, कभी सुबह सवेरे,
कभी सूरज चढ़े, कभी घने अंधेरे,
कभी सनीमा में, कभी बस बैठे,
कभी बीच हवा, वायुयान बैठे,
ये कविताएं कभी भी, कहीं भी,
विचारों में उतर आती हैं।
और फिर तुरन्त ही लिखने की
धौंस जमाती हैं।
अड़ ही जाती हैं, जब तक
पन्नों पर उतर नहीं जाती हैं।
पर एक बात तो है इनमें कि,
लिखने से पहले की
दादागीरी/ गुंडागर्दी तो ठीक,
पर जब कागज़ पर उतर आती हैं,
तो फिर तो मन...
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