Description
कविताओं के होंठ हिले
शब्दों पर शब्द मस्तिष्क से पन्नों पर उतर रहे थे, एक पंक्ति दूसरी
पंक्ति, हाथों की उँगलियाँ मस्तिष्क की सहायता से शब्दों को
शब्दों से जोड़ते हुए एक प्यारी सी कविता बुन रहे थे। एक
कविता, दूसरी कविता और दिनों में कविताओं का अम्बार सा लग
गया और कवितायेँ बोलने लगीं, उनके होंठ हिलने लगे और ये
लो, उन सभी कविताओं ने एक सूंदर सी पुस्तक का आकार ले
लिया,मेरी बीसवीं काव्य पुस्तिका, कविताओं के होंठ
हिले ।
यह पुस्तक मेरे उन सभी सम्बन्धिओं एवं मित्रों को समर्पित है जो
वैकुण्ठ धाम में विचरण कर रहे हैं।
आईये समीक्षा करें ।
पाठन का आनंद लें ।
जब
शब्दों से शब्द मिले,
और चल पड़े सिलसिले।
भावनाओं के पुष्प खिले।
कभी खट्टे, कभी मीठे,
रसीले कभी तीखे,
वीर रस तो कभी
सौंदर्य सने।
रौद्र कभी रंगीन
हास्य कभी ग़मगीन
तरह-तरह के भाव लिए
कविताओं के होंठ हिले।
जब
शब्दों से शब्द मिले,
और चल पड़े सिलसिले।
भावनाओं के पुष्प खिले।
हर प्रकार की भावनाओं
से ओतप्रोत,
कविताओं के होंठ हिले।
सुभाष सहगल साहित्य, फिल्म निर्माण, संस्कृति और आधुनिक
तकनीक का बेहतरीन मिश्रण हैं। एक संपादक के रूप में उनके काम
का दायरा विशाल और विविध है। टेलीविजन के लिए लोकप्रिय
धारावाहिक हैं *रामानंद सागर की रामायण,* विक्रम बेताल,
दादा दादी की कहानियां, श्री कृष्णा, मिर्जा गालिब आदि और
फिल्मों के लिए वारिस, इजाज़त, लेकिन, तेरी मेहरबानिया,
सलमा, बादल, चन परदेसी, एक चादर मैली सी ,कचहरी,आदि
कुछ नाम हैं। अब तक उन्होंने *250 से अधिक फिल्में की हैं।*
एक निर्माता और निर्देशक के रूप में, उन्होंने प्यार कोई खेल नहीं,
यारा सिल्ली सिल्ली जैसी फिल्में बनाई हैं।
उन्होंने विचारों के ज्ञान का उपयोग करके विचारों को व्यक्त करने
में अपना स्थान पाया है।
गुलज़ार लिखित एवं विशाल भारद्धाज के संगीत से सजे एवं
कैलाश अडवाणी द्धारा निर्देशित एक कहानी और मिली
धारावाहिक का दूरदर्शन(नेशनल)के लिए निर्माण भी किया ।
तकरीबन १५ फिल्म अवार्ड्स जूरीस में बतौर मेंबर एवम
चेयरपर्सन शामिल जिनमें राष्ट्रीय पुरुस्कार, स्क्रीन अवार्ड्स,ITA,
MIFF भी शामिल हैं ।
पिछले दो दशकों से, वह सक्रिय रूप से अपने काव्य कौशल के
माध्यम से साहित्य के कुछ विलक्षण कार्यों को सामने ला रहे हैं जो
अत्यधिक जन-आकर्षक, समसामयिक और कभी-कभी मजाकिया
होते हैं। और इसीलिए वह इस उद्देश्य की सेवा के लिए भारत
सरकार के साथ-साथ प्रतिष्ठित संगठन और अन्य सांस्कृतिक
संस्थानों से जुड़े हुए हैं। उनके नाम सोलह प्रकाशित हिंदी काव्य
पुस्तकें है।
दिल की अलमारी से,आहट अंतर्मन की,शब्दों की कड़ाही से, मेरे
खेत में कविता उगे,उद्गार,तिनके,टहनियां,इक कलम
चली,पगडंडियां,झंकार,भेलपुरी,गीतिका,लम्हे,जिज्ञासा,बयार,
मानवी के मनके आदि आदि .....
कविताओं के होंठ हिले उनकी बीसवीं काव्य पुस्तिका
है।
उनकी यात्रा सिनेमा के कई महत्वाकांक्षी लोगों के लिए
अनुकरणीय है। उनकी यात्रा एक स्नातक से शुरू होकर
*एफटीआईआई, पुणे से स्वर्ण पदक प्राप्तकर्ता* तक की है और फिर
उनका मंद बादलों को भेदते हुए फिल्म निर्माण के आकाश की यात्रा
करना और फिर भी सर्वश्रेष्ठ परिमाण में नौकायन करना सराहनीय
है।
सुभाष सहगल को एक चादर मैली सी के लिए *फिल्मफेयर* जैसे
पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, उनकी तीन फिल्मों चन्न
परदेसी, मढ़ी दा दीवा और कचहरी को लगातार तीन वर्षों तक
सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार से *राष्ट्रीय पुरस्कार*
मिला। वह *स्क्रीन पुरस्कारों के लिए जूरी, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
(दक्षिण) और एमएमआईएफएफ पुरस्कारों के अध्यक्ष रहे हैं।*
वह एक सफल सिनेमा के शिल्पकार रहे हैं। स्वच्छ एवं मनोरंजक
फिल्मों एवं कविताओं का सृजन करना उनका उद्देश्य है।