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कविताओं के होंठ हिले
शब्दों पर शब्द मस्तिष्क से पन्नों पर उतर रहे थे, एक पंक्ति दूसरी
पंक्ति, हाथों की उँगलियाँ मस्तिष्क की सहायता से शब्दों को
शब्दों से जोड़ते हुए एक प्यारी सी कविता बुन रहे थे। एक
कविता, दूसरी कविता और दिनों में कविताओं का अम्बार सा लग
गया और कवितायेँ बोलने लगीं, उनके होंठ हिलने लगे और ये
लो, उन सभी कविताओं ने एक सूंदर सी पुस्तक का आकार ले
लिया,मेरी बीसवीं काव्य पुस्तिका, कविताओं के होंठ
हिले ।
यह पुस्तक मेरे उन सभी सम्बन्धिओं एवं मित्रों को समर्पित है जो
वैकुण्ठ धाम में विचरण कर रहे हैं।
आईये समीक्षा करें ।
पाठन का आनंद लें ।
जब
शब्दों से शब्द मिले,
और चल पड़े सिलसिले।
भावनाओं के पुष्प खिले।
कभी खट्टे, कभी मीठे,
रसीले कभी तीखे,
वीर रस तो कभी
सौंदर्य सने।
रौद्र कभी रंगीन
हास्य कभी ग़मगीन
तरह-तरह के भाव लिए
कविताओं के होंठ हिले।
जब
शब्दों से शब्द मिले,
और चल पड़े सिलसिले।
भावनाओं के पुष्प खिले।
हर प्रकार की भावनाओं
से ओतप्रोत,
कविताओं के होंठ हिले।
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