Description
कोविड का प्रकोप अभी पूर्णतः समाप्त नहीं हुआ था। आशिंक रूप से मानवता अभी भी इसके जाल में फंसी हुई थी । इसी कोविड काल में अंतर्मन में झांकने के एवम आत्ममंथन करने के असीमित अवसर प्राप्त हुए।
इन्हीं अवसरों में मन के कई मनके कविताओं के रूप में उभर कर आये। कागज कलम तो नहीं परन्तु मोबाईल में उतार लिए वो काव्य मनके।
आनन फानन में मेरी सोलहवीं काव्य पुस्तिका उभर आई। पहली पुस्तिका (पन्द्रहवीं) का शीर्षक था *जिज्ञासा* जो कि मेरी ज्येष्ठ पुत्री का नाम है।
सोचा, सोलहवीं पुस्तिका का नाम *मानवी के मनके* रखना अनुचित ना होगा। मानवी मेरी कनिष्ठ पुत्री का नाम है। व्यस्तता के कारण पुस्तक लंबे समय तक प्रकाशित नहीं कर पाया। क्षमा प्रार्थी हूं।
तो लीजिए प्रस्तुत है मेरी सोलहवीं काव्य पुस्तिका *मानवी के मनके*
*मानवी के मनके।*
कुछ कही, कुछ अनकही।
कुछ कही, पर रही अनकही।
कुछ अनकही, फिर भी कही।
जो कही, वो ना कही।
और जो ना कही, वो गई कही।
ये कही अनकही के
ताने बाने में उलझे,
कुछ निकले मनके, मनके।
पुस्तक में पिरोया उन सब को,
और नाम दे डाला,
*मानवी के मनके।*
सुभाष सहगल
वर्ष १९७३ की बात है, पूना फिल्म इंस्टिट्यूट से फिल्म एडिटिंग का डिप्लोमा गोल्ड मैडल सहित प्राप्त कर मैनें मायानगरी मुंबई में पदार्पण किया।
आया तो था मैं फिल्म सम्पादक बनने और एक सफल फिल्म सम्पादक बन भी गया। २२ वर्ष तक जम के फिल्मों का सम्पादन किया, इस अंतराल में लगभग लगभग २५० हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ की फ़िल्में सम्पादित (एडिट) की।
जिनमें से मुख्य फ़िल्में थीं:-
लेकिन
इजाज़त
तेरी मेहरबानियां
वारिस
एक चादर मैली सी
निशान
हिम्मत और मेहनत
इत्यादि....
बहुत सारे महा धारावाहिक भी एडिट किये
प्रमुख धारावाहिकों के नाम हैं:-
रामायण
उत्तर रामायण
श्री कृष्णा
दादा दादी की कहानियां
विक्रम और बेताल
मिर्ज़ा ग़ालिब
आदि आदि ...
इस दौरान श्री रामानंद सागर, गुलज़ार, रविंद्र पीपट, चित्रार्थ, सुखवंत ढढा, के बापईया,राजा नवाथे, आनंद सागर,सागर सरहदी आदि दिग्दर्शकों के साथ बतौर सम्पादक कार्य करने का सुअवसर प्राप्त हुआ । सूची लम्बी है सबके नाम सम्मिलित करना संभव नहीं है, क्षमा प्रार्थी हूँ।
एक चादर मैली सी के लिए सर्वश्रेष्ठ सम्पादक का फिल्मफेयर अवार्ड एवं लेकिन के लिए ढेर सारे अवार्ड्स प्राप्त हुए ।
तीन पंजाबी फिल्मों चन्न परदेसी, कचहरी एवं मढ़ी दा दीवा को नेशनल अवार्डस से सम्मानित किया गया ।
फिर १९९२ में सम्पादन छोड़ लेखन, दिग्दर्शन, निर्माण अदि क्षेत्रों में घुसने का प्रयास किया।और कुछ फ़िल्में एवं धारावाहिक का निर्माण एवं निर्देशन किया।
फ़िल्में थीं:-सनी देओल स्टारर प्यार कोई खेल नहीं एवं पाओली डैम स्टारर यारा सिल्ली सिल्ली ।
गुलज़ार लिखित एवं विशाल भारद्धाज के संगीत से सजे एवं कैलाश अडवाणी द्धारा निर्देशित एक कहानी और मिली धारावाहिक का दूरदर्शन(नेशनल)के लिए निर्माण भी किया ।
तकरीबन १५ फिल्म अवार्ड्स जूरीस में बतौर मेंबर एवम चेयरपर्सन शामिल रहा जिनमें राष्ट्रीय पुरुस्कार, स्क्रीन अवार्ड्स,ITA, MIFF भी शामिल हैं ।
२०१५ से हिंदी काव्य लिखने का जूनून सवार है। भिन्न भिन्न विषयों पर लगभग १५०० कविताएं लिख चुका हूँ ।
अब तक मेरी पन्द्रह हिंदी कविताओं की पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ।
दिल की अलमारी से
आहट अंतर्मन की
शब्दों की कड़ाही से
मेरे खेत में कविता उगे
उद्गार
तिनके
टहनियां
इक कलम चली
पगडंडियां
झंकार
भेलपुरी
गीतिका
लम्हे
जिज्ञासा
बयार
मानवी के मनके
कविताओं का बरगद
मुंडेर पर बैठी कविताएं
आदि आदि .....
मेंरी कविताओं में समाज, राजनीती, धर्म, रिश्ते, नाते, आतंकवाद, प्रणय-प्रेम आदि सभी विषयों को गंभीरता एवं व्यंगात्मक दोनों शैलिओं में प्रस्तुत किया गया है।
परन्तु अक्सर आत्महत्या करता मजबूर किसान, आत्मदाह करती असहाय बाला, मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर करता सेना का जवान, भ्र्ष्ट राजनैतिक तंत्र, आतंकवादी एवं देशद्रोही कीट, हमारा अजातशत्रु पाकिस्तान आदि आदि मेरी कविताओं के केंद्रबिंदु होते हैं।
यदा कदा शुद्ध हास्य भी लिख लेता हूँ।
बस यही है मेरी छोटी सी जीवन यात्रा।