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दो शब्द, दिल से…..
मां सरस्वती नें कब कृपा कर दी और मैं कवितायेँ लिखने लगा, पता ही नहीं चला और मैं कवि बन बैठा। आनन फानन में २१ पुस्तकें लिख डाली।
१६ पुस्तकें प्रकाशित भी हो चुकी हैं।ये सत्तरहँवी पुस्तक है।
नाम भी मां नें सुझा दिया:-
"मुंडेर पर बैठी कवितायेँ "
सच में , लिख तो बहुत पहले दी थीं, मुंडेर पर बैठी हुईं थीं, प्रकाशित होने की प्रतीक्षा मे। जो व्यस्ततता के कारण मैं कर नहीं पा रहा था।
तो चलिए अंततः प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हुईं।
प्रस्तुत है मेरी सत्तरहवीँ प्रकाशित काव्य पुस्तिका,
"मुंडेर पर बैठी कवितायेँ "
पाठन का आनंद ले।
सुभाष सहगल
"मुंडेर पर बैठी कवितायेँ "
कुछ ऊपर, कुछ नीचे,
कुछ दाएं, कुछ बाएं,
ताक रहीं थी मौका,
कि पुस्तक में घुस जाएं,
मुंडेर पे बैठी कविताएं।
जी हां.....
मुंडेर पे बैठी मेरी कविताएं।
चाह थी सब की बस एक ही,...
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