Description
दो शब्द, लम्हों से लिपटे …..
कवि कैसे बनते हैं कभी सोचा है क्या? आईये विचार करते हैं।
कोई कहता है कि जब मनुष्य बहुत दुखी होता है तो कवि बन जाता है। कोई कहता है कि जब मनुष्य बहुत ही सुखी होता है तो कवि बन जाता है। पता नहीं कैसे कोई कवि बनता है पर यह तो है कि अनुभवों के आधार पर ही कविताएं फूटती हैं। कवि जो अपने आसपास देखता है, कविताओं के रूप में ढालता है।
मेरे सत्तर सालों के अनुभवों ने मुझे यही सिखाया है कि जो मैंने देखा उसको मैने कविताओं में ढाला तो मुझे प्रसन्नता होती है।
कुछ इसी प्रकार सृजित हुई मेरी अठारहवीं काव्य पुस्तिका *लम्हों से झांकती मेरी कविताएं*
आईये समीक्षा करें ।
पाठन का आनंद लें ।
सुभाष सहगल
"लम्हों से लिपटी मेरी कविताएं"
इधर से झांकें,
उधर से झांकें,
दाएं से कुछ बाएं से,
ऊपर से, कुछ नीचे से,
भांति भांति के अनुभव लेकर,
कतार में खड़ी दुम हिलाएं,
किस्से कहानियां सुनाने को आतुर,
लम्हों से लिपटी मेरी कविताएं।
लम्हों से लिपटी मेरी कविताएं।
हलचल मचाएं, चीखें चिल्लाएं,
कभी हसाएं, कभी रूलाएं,
दिल के दर्द को सर्द कर जाएं,
लम्हों से लिपटी मेरी कविताएं।
लम्हों से लिपटी मेरी कविताएं।
हमनें सुन ली, हम नें लिख ली,
आओ अब तुम्हें भी सुनाएं,
लम्हों से लिपटी ये कविताएं,
लम्हों से लिपटी मेरी कविताएं।
सुभाष सहगल
*सुभाष सहगल*
*सुभाष सहगल* भारतीय फिल्म उद्योग में एक प्रमुख व्यक्ति हैं, उन्हें सिनेमा के बेहतरीन सम्पादकों में से एक माना जाता है, उत्कृष्ट लेखन शक्ति के साथ सबसे नवीन कवि, उत्कृष्ट गीतकार, टेलीविजन के लिए तेज संपादक और मीडिया और मनोरंजन में कई नौसिखियों के करियर को संवारने में उन्होंने योगदान दिया है, एक दार्शनिक जो समाज के उत्थान के लिए कई स्वायत्त/गैर-स्वायत्त निकायों, ट्रस्टों और गैर-लाभकारी उद्यमों से जुड़े रहे हैं।
सुभाष सहगल साहित्य, फिल्म निर्माण, संस्कृति और आधुनिक तकनीक का बेहतरीन मिश्रण हैं। एक संपादक के रूप में उनके काम का दायरा विशाल और विविध है। टेलीविजन के लिए लोकप्रिय धारावाहिक हैं *रामानंद सागर की रामायण,* विक्रम बेताल, दादा दादी की कहानियां, श्री कृष्णा, मिर्जा गालिब आदि और फिल्मों के लिए वारिस, इजाज़त, लेकिन, तेरी मेहरबानिया, सलमा, बादल, चन परदेसी, एक चादर मैली सी ,कचहरी,आदि कुछ नाम हैं। अब तक उन्होंने *250 से अधिक फिल्में की हैं।*
एक निर्माता और निर्देशक के रूप में, उन्होंने प्यार कोई खेल नहीं, यारा सिल्ली सिल्ली जैसी फिल्में बनाई हैं।
उन्होंने विचारों के ज्ञान का उपयोग करके विचारों को व्यक्त करने में अपना स्थान पाया है।
गुलज़ार लिखित एवं विशाल भारद्धाज के संगीत से सजे एवं कैलाश अडवाणी द्धारा निर्देशित एक कहानी और मिली धारावाहिक का दूरदर्शन(नेशनल)के लिए निर्माण भी किया ।
तकरीबन १५ फिल्म अवार्ड्स जूरीस में बतौर मेंबर एवम चेयरपर्सन शामिल जिनमें राष्ट्रीय पुरुस्कार, स्क्रीन अवार्ड्स,ITA, MIFF भी शामिल हैं ।
पिछले दो दशकों से, वह सक्रिय रूप से अपने काव्य कौशल के माध्यम से साहित्य के कुछ विलक्षण कार्यों को सामने ला रहे हैं जो अत्यधिक जन-आकर्षक, समसामयिक और कभी-कभी मजाकिया होते हैं। और इसीलिए वह इस उद्देश्य की सेवा के लिए भारत सरकार के साथ-साथ प्रतिष्ठित संगठन और अन्य सांस्कृतिक संस्थानों से जुड़े हुए हैं। उनके नाम सोलह प्रकाशित हिंदी काव्य पुस्तकें है।
दिल की अलमारी से,आहट अंतर्मन की,शब्दों की कड़ाही से, मेरे खेत में कविता उगे,उद्गार,तिनके,टहनियां,इक कलम चली,पगडंडियां,झंकार,भेलपुरी,गीतिका,लम्हे,जिज्ञासा,बयार,
मानवी के मनके आदि आदि .....
मुंडेर पर बैठी कविताएं उनकी सोलहवीं काव्य पुस्तिका है।
उनकी यात्रा सिनेमा के कई महत्वाकांक्षी लोगों के लिए अनुकरणीय है। उनकी यात्रा एक स्नातक से शुरू होकर *एफटीआईआई, पुणे से स्वर्ण पदक प्राप्तकर्ता* तक की है और फिर उनका मंद बादलों को भेदते हुए फिल्म निर्माण के आकाश की यात्रा करना और फिर भी सर्वश्रेष्ठ परिमाण में नौकायन करना सराहनीय है।
सुभाष सहगल को एक चादर मैली सी के लिए *फिल्मफेयर* जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, उनकी तीन फिल्मों चन्न परदेसी, मढ़ी दा दीवा और कचहरी को लगातार तीन वर्षों तक सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार से *राष्ट्रीय पुरस्कार* मिला। वह *स्क्रीन पुरस्कारों के लिए जूरी, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (दक्षिण) और एमएमआईएफएफ पुरस्कारों के अध्यक्ष रहे हैं।*
वह एक सफल सिनेमा के शिल्पकार रहे हैं। स्वच्छ एवं मनोरंजक फिल्मों एवं कविताओं का सृजन करना उनका उद्देश्य है।