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युवा-चेतना अंतर्मन या अवचेतन मन की ऊर्ध्वगामी यात्रा है इसमें विभिन्न सोपानों पर असंतत भारी परिवर्तन होते हैं जिसे युवा-क्रांति परिभाषित किया है । इस पुस्तक का उद्देश्य युवा-क्रांति के भारतीय विचार से राष्ट्र की समस्याओं को समझने और उनका समाधान का आह्वान है । स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे चरण में क्रांतिकारियों ने गूढ़ भारतीय दर्शन आत्मसात करते हुए माँ भारती के चरणों में अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे - यह इस पुस्तक में स्थापित
किया गया है । युवा-चेतना जाग्रत होने पर पाठकों को यह स्पष्ट हो जायेगा कि भारतीय संविधान पूरी तरह अभारतीय है और चुनावी लोकतंत्र विदेशी विचार-पद्धति है जो वर्तमान दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है । राजनीति में गांधीवादी पाखंड और समाज में धर्म के नाम पर पाखंड को समझ कर इन्हे समाप्त करना युवा-क्रांति है । आज संघ (आरएसएस) भी दिग्भ्रमित है । पुस्तक का पहला अध्याय आत्मकथ्यात्मक युवे-चेतना कि यात्रा है , शेष ८ अध्याय विस्तार से उपरोक्त बिंदुओं पर विवेकपूर्ण विचार प्रस्तुत करते हैं ।
[युवा – चेतना; लोकतंत्र और संविधान; आपातकाल : 25 जून, 1975 - 21 मार्च, 1977; चुनावी लोकतंत्र में अन्तर्निहित दोष; धर्म - युक्त स्वतंत्रता संग्राम; गांधी और गांधीवादी पाखंड; दिग्भ्रमित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ; स्वतंत्र भारत ; युवा – क्रांति]
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