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राम लला 1949 में अयोध्याजी में जन्मस्थान पर प्रकट हुए थे । तबसे यह स्वयंभू विग्रह करोड़ों भक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र रहा है । 22 जनवरी, 2024 को नए विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा की गयी । क्या यह उपासना धर्म और भक्ति-साधना के अनुकूल है ? भक्ति सरल है पर कठिन साधना के बिना पाखंड और भ्रम ही होता है । भक्ति-साधना क्या है ? मंदिर क्यों जाते हैं ? मंदिर क्यों बनाये जाते हैं ? क्या भक्ति-साधना के लिए मंदिर और मूर्ति पूजा आवश्यक है ? इस पुस्तक में इन प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास किया गया है । भक्त-साधक के लिए साकार-सगुण उपासना में इष्ट प्रमुख है , यही नहीं इष्ट का विशिष्ट विग्रह भी महत्त्वपूर्ण होता है । इसलिए राम लला के विग्रह को विस्थापित कर नए विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा धर्म-सम्मत नहीं है । इस पुस्तक में गहन-चिंतन, अध्ययन और विशुद्ध भक्ति-भाव से उत्पन्न विचारों से यह निष्कर्ष स्थापित किया गया है ।
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