Description
स्वस्तिक प्रतिक अत्यंत प्राचिन प्रतिक हैं जीसका उदभव आर्य संस्क्रुति और आर्य धर्मसे माना जाता हैं । स्वस्तिकको प्रतिकोंका विश्वगुरु माना जाता हैं क्युंकी मानव उत्पत्तिका ये सर्व प्रथम चिन्ह हैं । हजारों वर्षोंसे स्वस्तिका प्रतिक ही एक ऐसा प्रतिक हैं जो विश्वव्यापी और विश्वमें सर्वमान्य हैं । स्वस्तिक प्रतिकका उपयोग विश्वके सारे खंडोमे पाया गया हैं । मानव जातीके ये सर्वप्रथम प्रतिकका उपयोग पुरातन युगोंसे ही हर संस्क्रूति, सभ्यता और धर्मोंमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे होता आया हैं । स्वस्तिक विश्वकी हर मानवजातीका अत्यंत प्राण प्रिय प्रतिक है क्युंकी स्वस्तिक चिन्हको पुरातन कालसे ही एक आध्यात्मिक, शुभकारी, लाभकारी पुण्यकारी और मौक्षदायी प्रतिकके रूपमें आदरणीय, सन्माननीय और पूजनीय माना गया हैं । स्वस्तिकको पश्चिमी देशोमें प्रेम, प्रकाश, जीवन और सौभाग्यका चिन्ह भी माना जाता हैं । विश्वकी सर्वप्रथम मानव संस्क्रुति आर्यसंस्कृति और आर्यधर्म या सनातनधर्मसे लेकर मायन, यहुदी, एझटेक, इन्का, पेगन, ताओ, शींतो, क्रिश्चियन, इस्लाम जैसे अन्य धर्मों और विविध संस्कृतिओंने स्वस्तिक प्रतिकका प्रयोग धार्मिक चिन्ह, शुभकामना चिन्ह, लाभकारक चिन्ह, रक्षाप्रतिक या तो कलात्मक चिन्हके रूपमें स्विकारा हैं । आज भी विश्वके अधिकांश लोग स्वस्तिक प्रतिकको धार्मिक,आध्यात्मिक, शुभ, मंगल एवं लाभ और कल्याणका प्रतिक मानते हैं और उनका आदर और सन्मानसे उसे ग्रहण करते हैं और ऊसकी पूजा और साधना करते हैं । आर्यधर्मेकी शाखाएं जैसे हिंदु, शिख, जैन, बौध और झोरोस्ट्रीयन और पूर्वके अन्य ताओ, शीन्तो जैसे धर्मोंमें स्वस्तिक प्रतिकको ईश्वरका प्रतिक माना गया हैं ईसीलीए उसे पूजनीयका स्थान प्रदान किया गया हैं । हिंदु धर्ममें स्वस्तिकको श्री गणेश का और शक्तिका स्वरुप माना गया हैं और उसे सर्व संस्कारों और पूजाके विधानोंमे श्री गणेशजीकी तरह सर्व प्रथम स्थान दीया गया हैं ।
सुख शांति, सौभाग्य और सम्रुद्धि प्रदान करनेवाले ये दैवी और चमत्कारीक प्रतिककी भक्ति और साधनाकी गंगाधारातो प्राचिनकालसे अविरत बह रही हैं मगर स्वस्तिकके गुणगानके भजन और गीत अलभ्य होनेसे एक आध्यात्मिक अनुभूति उदभवित होने पर मैने विश्वकी सर्वप्रथम भजन रचना ‘’ स्वस्तिकामृत’’ प्रकाशीत की थी और अब ये मेरी दुसरी भजन, आरती गीत, धून ईत्यादीकी रचना ‘’स्वस्तिकगंगा’’ प्रकाशीत करनेके अवसर प्राप्त हुआ ईसीलीये मैं अने आपको धन्य और अहोभाग्य समझता हुं ।
विश्वके पावन पवित्र और कल्याणकारी स्वस्तिक प्रतिकके भक्तिभावको उजागर करने और उसका प्रचार प्रसार करनेके महा आशयसे लीखी हुई ये मेरी नवीन रचना ‘’स्वस्तिकगंगा’’ के प्रकाशनको आप सहर्ष स्विक्रुत करेंगे। मेरी आप भक्तजनोंको नम्र बिनती हई की आप ईस गंगाजलके समान पावन और पवित्र ‘’स्वस्तिकगंगा’’के हर बुंद स्वरूप रचनका आचमन जरूर करें गे और अन्य भक्त जनों कोभी प्रसादके रूपमें अर्पण करेंगे ।
श्री हेंमंतकुमार गजानन् पाध्याका जन्म पूर्वेय मुंबई राज्यके थाणे जिल्ले और् हालके गुजरात राज्यके पारसीओंके ऐतिहासीक स्थल संजान बंदरके पास खत्तलवाडा गांवमें हुआ था । सुरतकी पी.टी. सायन्स कालीजमें अभ्यास करके उन्होंने दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालयसे रसायन और भौतिकशास्त्रमें स्नातककी पदवी प्रथम वर्गंमें उत्तिर्ण होके प्राप्तकी थी । पश्च्यात उन्होंने हाफकीन ईंस्टीट्युट ओफ रीसर्च एन्ड बायोफार्मास्युटीकल्स, परेल,मुम्बईमें अभ्यास करनेके बाद पोलीमर टेक्नोलोजीकी अनुस्तानतककी पदवी युनिवर्सीटी ओफ आस्टन ईन् बर्मिंगहामसे प्राप्त करने केलीए १९७६में ईंग्लंड आये थे । परदेशमें आगमनके बाद अभ्यासके साथ् साथ उन्होंने आर्य धर्म, संस्कृति, परमपरा और मातृभाषाको जीवंत और ज्वलंत बनानेके अभियानमें अपना अमूल्य योगदान भी प्रदान किया । ईंग्लंडकी कुछ स्थानिक संस्थाओंके संस्थापक् प्रमुख और् अन्य राष्ट्रीय और आंतर राष्ट्रीय संस्थाओंके सदस्यभी हैं । उन्होंने १९९५ में हिंदु स्वातंत्र्यवीर स्मृति संस्थाम् नामकी संशोधन संस्थाकी शरुआतकी और सात दशकसे जिनिवामें पडे हुए गुजरातके सर्वप्रथम क्रांतिकारी स्वातंत्र्यवीर पंडित श्यामजी कृष्णवर्मा और् उनकी पत्नी भानुमतीजीके अस्थीकुंभोको भारत भेजनेके कार्यमें महत्वपूर्ण योगदान प्रादानकीया और् कृष्णवर्मा दंपतीके अंतिंम ईच्छा परीपूर्ण करनेमें अपना विशेष योगदान् दीया । पंडित श्यामजीकी स्मृतिमें लंडन स्थित उनके मकानपे अथाग प्रयत्न करके स्म्रुतितक्ति लगवायी और सोबोर्न विश्वविद्यालय, पेरीस और् ओक्षफर्ड विश्वविद्यालय, ओक्षफर्डमें पंडित श्यामजी कृष्णवर्मा रौप्य चंद्रककी स्थापना करवायी जो हर् दो साल संस्कृतके विद्वान को आर्य या वेदीक धर्मके और संस्कृत भाषाके संशोधन और अध्ययनके लीए विशेष पारितोषिकके रुपमें प्रदान् कीया जाता हैं । श्री हेमंतकुमारने पंडित श्यामजीके विषयमें गहन संशोधन और अभ्यास करके श्यामजीकी ईंग्लीशमें चित्रजीवनी ‘ The Photographic Reminiscance of Pandit Shyamaji Krishnavarma’ और गुजराती एवं हिंदीमें ‘काव्यांजली’ और ‘श्रद्धांजली’ नामकी पूस्तिकाएं भी लीखके प्रकाशीतकी हैं.
श्री हेमंतकुमारने युवावस्थासे ही लेखन कार्यका शौख और धून थी । वो भजनों, राष्ट्रभक्तिकें गीतों, शौर्य गीतों, आध्यात्मिक गीतों के रचिता कति हैं और धार्मिक, राजनैतिक और सामाजीक निबंधोंके भी लेखक हैं । स्वस्तिक प्रतिकके युरोपमें सार्वजनिक उपयोग पर प्रतिबंध लादनेके युरोपीयन पार्लामेन्टके प्रस्तावके विरोधमें प्रकाशित कीया गया उनका अंग्रेजी लेख, ‘’ Hands off our Sacred Swastika’ को बहोत प्रशंशा और धन्यवाद प्राप्त हुए थे । लेखन और प्रकाशन कार्यकी शृंखलामें ‘दर्द’, ‘सत्यनारायण्की कथा’, ‘स्वामिविवेकानंद संक्षिप्त जीवन चरित्र’’, हिन्दु धर्म’, ‘स्वस्तिकामृत’, ‘स्वस्तिकगंगा’ ‘स्वस्तिकधारा (गुजराती), ‘Swastika Poems’, ‘जय हिन्दुत्वम (म्युझिकल सी .डी.)’ ईत्यादीका समावेश होता हैं ।पंडित श्यामजीकी स्मृति सदा ज्वलंत रखनेकी उनकी महेच्छाके अभियानमें अपने संशोधनों और अभ्यासपे आधारीत और अन्य पुस्तकोंपे अवलंबीत गुजराती भाषामें एक विस्तृत जीवनी प्रकाशित करनेकी योजनाभी आकार ले रही हैं । ईस तरह परदेशमें रहते हुए भी श्री हेंमंतकुमार गजानन पाध्याने अपने धर्म, संस्कृति,साहित्य, राष्ट्रप्रेम और देश्भक्ति जैसे विविध क्षेत्रोंमें अपना अणमोल और प्रशंशनीय योगदान अर्पण किया हैं ।
सदभाग्य, आबादी और शुभेच्छाके प्रतिक स्वस्तिकके सुप्रचार प्रसार और उनके पावन पवित्र, शुभ, मंगल और आध्यात्मिक स्वरूपको पश्चिमके समाजमें न्याय और सन्मान प्राप्त कराके पश्चिमके देशोमें स्वस्तिकके प्रतिकको पुनः प्रस्थापित के अभियानमें श्री हेंमंतकुमार सक्रीय हैं और अन्य संस्थाओंके सतत संपर्कमें रहते हैं ।
विश्वकी सर्वप्रथम स्वस्तिक पर लीखे गीतोंकी पुस्तिका ‘स्वस्तिकामृत’के बाद ये द्वितीय पुस्तिका ’स्वस्तिकगंगा’ श्री हेंमंतकुमारकी स्वस्तिक प्रतिकके प्रति उनकी श्रद्धा, आस्था और समर्पणताका एक अणामोल उदाहरण हैं । हम अपेक्षा रखते हैं की श्री हेंमंतकुमार गजानन् पाध्याके स्वस्तिक प्रतिककी साधना, आराधना और प्रशंशामें लिखे हुए ये भजन, गीत, आरती, धून ईत्यादिके ये ‘स्वस्तिकगंगा’ पुस्तकको विश्वकी स्वस्तिक प्रिय श्रद्धालु भारतीय जनता उनका सहर्ष स्वागत करेगी ।