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Shrimad Bhagwat Geeta in Hindi (eBook)

Type: e-book
Genre: Religion & Spirituality, Theology
Language: Hindi, Marathi
Price: ₹99
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

Geeta अर्थात् Shrimad Bhagwat Geeta

श्रीमद्भागवत गीता न केवल धर्म का उपदेश देती है, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाती है। महाभारत के युद्ध के पहले अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। गीता के उपदेशों पर चलकर न केवल हम स्वयं का, बल्कि समाज का कल्याण भी कर सकते हैं। पौराणिक आचार्य रामकृष्णानंदजी शास्त्री बताते हैं कि महाभारत के युद्ध में जब पांडवों और कौरवों की सेना आमने-सामने होती है तो अर्जुन अपने बुंधओं को देखकर विचलित हो जाते हैं। तब उनके सारथी बने श्रीकृष्ण उन्हें उपदेश देते हैं। ऐसे ही वर्तमान जीवन में उत्पन्न कठिनाईयों से लडऩे के लिए मनुष्य को गीता में बताए ज्ञान की तरह आचरण करना चाहिए। इससे वह उन्नति की ओर अग्रसर होगा। श्रीमद्भागवत गीता में जीवन का सार बताया गया है और अगर कोई व्यक्ति गीता के ज्ञान को अपने जीवन में उतार ले तो वो किसी भी परिस्थिति का सामना बहुत आसनी से कर सकता है. कहते हैं गीता के पूर्ण ज्ञान को अपने जीवन में उतारना हर किसी के वश की बात नहीं है लेकिन गीता के कुछ उपदेश ऐसे हैं जिन्हें हर व्यक्ति को अपनाना चाहिए और उसे आजमाने से वह खुश हो सकते हैं. आज हम आपको गीता के कुछ प्रमुख उपदेश बताने जा रहे हैं जो आपको लाभ दे सकते हैं

इंसान का सबसे बड़ा शत्रु होता है उसका स्वयं का क्रोध होता है और अगर व्यक्ति अपने क्रोध पर नियंत्रण करना सीख ले तो वह बहुत सी परेशानियों से बच सकता है. जी हाँ, गीता में कहा गया है कि क्रोध व्यक्ति की बुद्धि को नष्ट कर देता है, जो मनुष्य के पतन का कारण बनता है इस करन से व्यक्ति को कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए.

इंसान के दुख का सबसे बड़ा कारण होता है कार्य को करने से पहले उसके परिणाम के बारे में सोचना और यही परिणाम व्यक्ति को कुछ भी करने से रोकता है. जी दरअसल गीता में कहा गया है कि कर्म करते रहो फल की इच्छा मत करो, अगर तुम मन लगाकर कर्म करोगे तो ईश्वर उसका फल अवश्य देगा और अगर व्यक्ति गीता के इस उपदेश को अपने जीवन में उतार लेने से सब काम हो जाते हैं.

श्रीमद्भगवत गीता के अध्याय 9 श्लोक 30 में भी यही प्रमाण है। लिखा है कि कोई अतिश्य दुराचारी व्यक्ति भी है। यदि वह विश्वास के साथ परमात्मा की भक्ति करने लग गया है तो उसे महात्मा के तुल्य मानना चाहिए।

अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाला प्रभु काल कह रहा है कि ‘हे अर्जुन यह मेरा वास्तविक काल रूप है, जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था।‘

गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि हे अर्जुन तू सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा, उस परमात्मा की कृपा से ही परम शांति को प्राप्त होगा तथा शाश्वत् स्थान अर्थात् सनातन परम धाम अर्थात् कभी न नष्ट होने वाले स्थान को प्राप्त होगा।

गीता अध्याय 18 श्लोक 63 में कहा है कि मैंने तेरे से यह रहस्यमय अति गोपनिय(गीता का) ज्ञान कह दिया। अब जैसे तेरा मन चाहे वैसा कर। (क्योंकि यह गीता के अंतिम अध्याय अठारह के अंतिम श्लोक चल रहे हैं इसलिए कहा है।)

गीता अध्याय 18 श्लोक 65 में गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि यदि मेरी शरण में रहना है तो मेरी पूजा अनन्य मन से कर। अन्य देवताओं(ब्रह्मा, विष्णु, शिव) तथा पितरों आदि की पूजा त्याग दे। फिर मुझे ही प्राप्त ही होगा अर्थात् ब्रह्म लोक बने महास्वर्ग में चला जाएगा। मैं तुझे सत प्रतिज्ञा करता हूँ। तू मेरा प्रिय है।

गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में कहा है कि यदि (एकम्) उस अद्वितीय अर्थात् जिसकी तुलना में अन्य न हो उस एक सर्व शक्तिमान, सर्व ब्रह्मण्डों के रचनहार, सर्व के धारण-पोषण करने वाले परमेश्वर की शरण में जाना है तो मेरे स्तर की साधना जो ॐ नाम के जाप की कमाई तथा अन्य धार्मिक शास्त्र अनुकूल यज्ञ साधनाएँ मुझ में छोड़(जिसे तूं मेरे ऋण से मुक्त हो जाएगा)। उस (एकम्) अद्वितीय अर्थात् जिसका कोई सानी नहीं है, की शरण में (व्रज) जा। मैं तुझे सर्व पापों (काल के ऋणों) से मुक्त कर दूंगा, तू चिंता मत कर।

पवित्र गीता जी के ज्ञान को उस समय बोला गया था जब महाभारत का युद्ध होने जा रहा था। अर्जुन ने युद्ध करने से इन्कार कर दिया था। युद्ध क्यों हो रहा था? इस युद्ध को धर्मयुद्ध की संज्ञा भी नहीं दी जा सकती क्योंकि दो परिवारों का सम्पत्ति वितरण का विषय था। कौरवों तथा पाण्डवों का सम्पत्ति बंटवारा नहीं हो रहा था। कौरवों ने पाण्डवों को आधा राज्य भी देने से मना कर दिया था। दोनों पक्षों का बीच-बचाव करने के लिए प्रभु श्री कृष्ण जी तीन बार शान्ति दूत बन कर गए। परन्तु दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जिद्द पर अटल थे। श्री कृष्ण जी ने युद्ध से होने वाली हानि से भी परिचित कराते हुए कहा कि न जाने कितनी बहन विधवा होंगी ? न जाने कितने बच्चे अनाथ होंगे ? महापाप के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। युद्ध में न जाने कौन मरे, कौन बचे ? तीसरी बार जब श्री कृष्ण जी समझौता करवाने गए तो दोनों पक्षों ने अपने-अपने पक्ष वाले राजाओं की सेना सहित सूची पत्रा दिखाया तथा कहा कि इतने राजा हमारे पक्ष में हैं तथा इतने हमारे पक्ष में। जब श्री कृष्ण जी ने देखा कि दोनों ही पक्ष टस से मस नहीं हो

रहे हैं, युद्ध के लिए तैयार हो चुके हैं। तब श्री कृष्ण जी ने सोचा कि एक दाव और है वह भी आज लगा देता हूँ। श्री कृष्ण जी ने सोचा कि कहीं पाण्डव मेरे सम्बन्धी होने के कारण अपनी जिद्द इसलिए न छोड़ रहे हों कि श्री कृष्ण हमारे साथ हैं, विजय हमारी ही होगी (क्योंकि श्री कृष्ण जी की बहन सुभद्रा जी का विवाह श्री अर्जुन जी से हुआ था)। श्री कृष्ण जी ने कहा कि एक तरफ मेरी सर्व सेना होगी और दूसरी तरफ मैं होऊँगा और इसके साथ-साथ मैं वचन बद्ध भी होता हूँ कि मैं हथियार भी नहीं उठाऊँगा। इस घोषणा से पाण्डवों के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। उनको लगा कि अब हमारी पराजय निश्चित है। यह विचार कर पाँचों पाण्डव यह कह कर सभा से बाहर गए कि हम कुछ विचार कर लें। कुछ समय उपरान्त श्री कृष्ण जी को सभा से बाहर आने की प्रार्थना की। श्री कृष्ण जी के बाहर आने पर पाण्डवों ने कहा कि हे भगवन् ! हमें पाँच गाँव दिलवा दो। हम युद्ध नहीं चाहते हैं। हमारी इज्जत भी रह जाएगी और आप चाहते हैं कि युद्ध न हो, यह भी टल जाएगा।

पाण्डवों के इस फैसले से श्री कृष्ण जी बहुत प्रसन्न हुए तथा सोचा कि बुरा समय टल गया। सभा में केवल कौरव तथा उनके समर्थक शेष थे। श्री कृष्ण जी ने कहा दुर्योधन युद्ध टल गया है। मेरी भी यह हार्दिक इच्छा थी। आप पाण्डवों को पाँच गाँव दे दो, वे कह रहे हैं कि हम युद्ध नहीं चाहते। दुर्योधन ने कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक तुल्य भी जमीन नहीं है। यदि उन्हें चाहिए तो युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र के मैदान में आ जाऐं। इस बात से श्री कृष्ण जी ने नाराज होकर कहा कि दुर्योधन तू इंसान नहीं शैतान है। कहाँ आधा राज्य और कहाँ पाँच गाँव? मेरी बात मान ले, पाँच गाँव दे दे। श्री कृष्ण से नाराज होकर दुर्योधन ने सभा में उपस्थित योद्धाओं को आज्ञा दी कि श्री कृष्ण को पकड़ो तथा कारागार में डाल दो। आज्ञा मिलते ही योद्धाओं ने श्री कृष्ण जी को चारों तरफ से घेर लिया। श्री कृष्ण जी ने अपना विराट रूप दिखाया। जिस कारण सर्व योद्धा और कौरव डर कर कुर्सियों के नीचे घुस गए तथा शरीर के तेज प्रकाश से आँखें बंद हो गई। श्री कृष्ण जी वहाँ से निकल गए।

क्या गीता जी का नित्य पाठ करने का या दान करने का कोई लाभ नहीं
- धार्मिक सद्ग्रन्थों के पठन-पाठन से ज्ञान यज्ञ का फल मिलता है। यज्ञ का फल कुछ समय स्वर्ग या जिस उद्देश्य से किया उसका फल मिल जाता है, परन्तु मोक्ष नहीं। नित्य पाठ करने का मुख्य कारण यह होता है कि सद्ग्रन्थों में जो साधना करने का निर्देश है तथा जो न करने का निर्देश है उसकी याद ताजा रहे। कभी कोई गलती न हो जाए। जिस से हम वास्तविक उद्देश्य त्याग कर गफलत करके शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) न करने लग जाऐं तथा मनुष्य जीवन के मुख्य उद्देश्य की याद बनी रहे कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य आत्म कल्याण ही है जो शास्त्र अनुकूल साधना से ही संभव है।

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Book Details

Number of Pages: 417
Availability: Available for Download (e-book)

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