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यह उपन्यास "बैशाख की धुप" एक गाँव की कहानी है / एक बेबस लाचार बिना माँ बाप के जमुना की कहानी है / जो एक कोर दाल भात या एक कोना सुखी रोटी के लिए गाँव का पुकारू नौकर रहता है / गाँव का बैजू काका और ललमटिया काकी के यहाँ दिन रात पड़ा रहता है / बैजू काका तो उसे प्यार करते हैं मगर बाँझ ललमटिया उसे तनिक भी प्यार नहीं करती है / एक जून की रोटी जमा करना उसके जीवन की अहम् हिस्सा है और कष्ट भरा जिंदगी ही उसके जीने का आधार है / यह गाँव के सच्चे जीवन पर आधारित कहानी है / यह गाँव के जीवन के हर दर्द और ख़ुशी के लम्हो का व्यान करती है /
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