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बाल-किशोर वय के पाठक-पाठिकाओं को पुराने जमाने की कहानियाँ भी पसन्द आती हैं और भविष्य की कहानियाँ भी। इनके मुकाबले वर्तमान काल की पृष्ठभूमि पर लिखी गयीं यथार्थपरक कहानियाँ (जैसे कि समानान्तर सिनेमा) उन्हें रास नहीं आतीं। ऐसा क्यों होता है?
सम्भवतः बच्चों-किशोरों को चाहिए ‘कल्पनाशीलता’ और कल्पनाशीलता के ज्यादा उपयोग की सम्भावना या तो भूतकाल की कहानियों को रचने में रहती है, या फिर भविष्यत् काल की कहानियाँ रचने में।
बच्चों की कल्पनाशीलता को पंख लगे, इसके लिए जरुरी है कि उन्हें पौराणिक आख्यान और वैज्ञानिक कपोल कथायें, दोनों ही पढ़ने दिये जायें।
ऐसी ही दो कहानियाँ एक साथ प्रस्तुत की जा रही हैं। एक है- ‘स्निग्धा ग्रह के वासी’, जो वैज्ञानिक कपोल कथा है; और दूसरी है-
‘दैत्य का पुनर्जन्म’, जो पौराणिक कपोल कथा है।
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