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‘साहित्यिक पत्रकारिता का परिदृश्य’ में पत्रकारिता से विलुप्त होते जा रहे साहित्य के मुद्दे को प्रभावी ढंग से रखने के साथ-साथ साहित्यिक पत्रकारिता के प्रारंभ से अब तक की स्थितियों का जायजा लेते हुए उस पर साहित्यकारों, पत्रकारों से आलेख, संवाद, बातचीत व वक्तव्यों के माध्यम से विमर्श किया गया है।
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