You can access the distribution details by navigating to My pre-printed books > Distribution
इस आप्तवाणी में परम पूज्य दादाश्री द्वारा अनुभव किए गए आत्मा के गुणधर्मो और उसकेस्वभाव का वर्णन है। थ्योरिटिकलतो है पर प्रेक्टिकलीवे खुद उन गुणों काउपयोग कैसे कर पाए, उसका वर्णनहै। उनके वर्तन में वह आ चुका था और हमें भी इनका उपयोग करके आत्मा में आ जाने की अद्भुत समझ दे पाए। और उन गुणों का उपयोग करके सांसारिक परिस्थितियों में वीतरागता कैसे रखी जा सकती है, वे बातें सिद्ध स्तुति के चेप्टर में हमें प्राप्त होती हैं । लौकिक मान्यताओं के सामने वास्तविक्ता क्या है और मान्यताओं की विविध दशाओं में ऐसे गुणों व स्वभाव का उपयोग कैसेकिया जा सकता है, ज्ञानी पुरुष मेंऐसे गुण व स्वभाव यथार्थ रूप से कैसे बरतते हैंऔर उससे भी आगे तीर्थंकर भगवंतो को सर्वोतम दशा में कैसा रहता होगा, ये सारी बातें जो दादाश्री के श्रीमुख से निकली हैं, वे सब यहाँ समाविष्ट हुई हैं।
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book आप्तवाणी-१४(भाग -२).