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"विकास" यह संकल्पना अब सिर्फ भौतिकवाद मे लटक कर वहाँ तक ही सीमित रह गई है | प्रति व्यक्ति खपत और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढाते रहना यही पैमाना है, आँख बंद करके विकास करते रहने का प्रयास हमारे देश में ही नहीं दुनियाभर मे जारी है | इस अंधी दौड में भूटान जैसे चंद देशो को छोडकर सभी लगे है , दुनिया की यह दौड़ जारी है | यह दौड़ हमारे दिलोदिमाग पर इतनी हावी हो चुकी है की हम इसके वैयक्तिक, समाजिक और प्रकृति पर होने वाले दूरगामी दुष्परिणामों को नजरअंदाज करके पूर्ण रूप से विनाश की तरफ जा रहे है | अर्थशास्त्र के ज्ञाता एकतरफ हमें बता रहे है की "विकास" हो रहा है , पर दुसरी तरफ हम सभी का अनुभव कुछ और बताता हैं। मन चंचल सा हो गया है, अंदर से डरे हुये है , आए दिन दुनिया भर में आपदाए बढ़ती दिखाई दे रही है, दुनिया विनाश की कगार पर खड़ी है |
इस अशाश्वत, विनाशक विकास, मानवनिर्मित आपदाओ का जगह जगह लोग व कुछ समूह विरोध भी कर रहे है | हम चाहे इस बात को समझकर भी नज़रअंदाज़ करें और अनभिज्ञ बनकर चलते रहे। परिस्थितीयां बदलने वाली नही हैं और समस्याएं तो बढ़ती ही जा रही है | संकट तो अब आपके द्वार पर आ खड़ा है |
इस बात को हम सभी समझे और समस्या का हल ढूंढने का प्रयास करे | मैं अपनी जीवनशैली में किस तरह बदलाव लाकर इस विध्वंस को रोक सकता हुँ? प्रतिदिन की जीवनशैली में और अपनी सोच में क्या बदलाव करके हम इस विनाशकारी विकास को रोक सकते हैं ताकि हमारा और हमारी आनेवाली पीढ़ियों का जीवन शाश्वत और आनंदमयी रहे। इस उद्देश को गति देने का प्रग्रतिशील विचार इस किताब के द्वारा हमारे सामने रखने का प्रयास किया गया है |
यह देश मेरा हैं, इस दुनिया का मैं हिस्सा हुँ, तो ज़िम्मेदारी भी मेरी ही हैं |
आइये शुरुआत खुद से करे, फिर परिवार, दोस्त व रिश्तेदारों को भी बताए |
आप एक से अधिक किताबे खरीदे और पाठशाला, महाविद्यालय, ग्रंथालय, अपने मित्रों, रिश्तेदारों को जन्मदिन, शादी, त्योहार ऐसे अवसरो पर प्रदान करे | इस किताब से जो निधी मिलेगी उसे वसुंधरा स्वच्छता अभियान के शुद्ध हवा, शुद्ध पानी और सबके लिये शुद्ध विषमुक्त अन्न के कार्य के लिये दिया जाएगा |
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