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"विकास" यह संकल्पना अब सिर्फ भौतिकवाद मे लटक कर वहाँ तक ही सीमित रह गई है | प्रति व्यक्ति खपत और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढाते रहना यही पैमाना है, आँख बंद करके विकास करते रहने का प्रयास हमारे देश में ही नहीं दुनियाभर मे जारी है | इस अंधी दौड में भूटान जैसे चंद देशो को छोडकर सभी लगे है , दुनिया की यह दौड़ जारी है | यह दौड़ हमारे दिलोदिमाग पर इतनी हावी हो चुकी है की हम इसके वैयक्तिक, समाजिक और प्रकृति पर होने वाले दूरगामी दुष्परिणामों को नजरअंदाज करके पूर्ण रूप से विनाश की तरफ जा रहे है | अर्थशास्त्र के ज्ञाता एकतरफ हमें बता रहे है की "विकास" हो रहा है , पर दुसरी तरफ हम सभी का अनुभव कुछ और बताता हैं। मन चंचल सा हो गया है, अंदर से डरे हुये है , आए दिन दुनिया भर में आपदाए बढ़ती दिखाई...
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