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मनुष्य की वह ऊर्जा शक्ति जिसके द्वारा असंभव को संभव बनाने के समूचे प्रावधान प्रशस्त होते है; दुर्भाग्यवश वह अनेको अतृप्त इच्छाओं के कारण बलि चढ़ते हुए तिरोहित हो जाती है। गहरी चाहत को पाने हेतु संकल्प बल को जन्म लेना अनिवार्य है। इस पृथ्वी पर दो सत्य तथ्य अकाट्य है जिनमे पहला है कर्म फल द्वारा निर्मित मनुष्य का भाग्य और दूसरा है उसके संकल्पों पर आधारित पुरुषार्थ के द्वारा नए भाग्य की रचना। यह दोनों सत्य अकाट्य है; देखना मात्र यह होता है की जीव इन दोनों में से किसका चयन करता है। भाग्य पर आधारित लोग अगर स्वर्णिम भाग्य को लेकर भी पृथ्वी पर आ गए है और संकल्प आधारित पुरुषार्थ से बचते रहते है.… तो यह जान लेना चाहिए की वह अपने भाग्य की पूंजी को निपटा कर चूंच अर्थात खली हो कर लौट जाते हैं . और वहीँ दुरसी और जो जीव भाग्य को...
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