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श्रीमद भगवद गीता का यह दूसरा अध्याय है और इसे ज्ञान योग के नाम से जाना जाता है। वास्तविकता में यह दूसरा अध्याय एक प्रकार से पूरी गीता का एक संपूर्ण परिचय है। इसमें आने वाले सभी अध्यायों के विषय में बताया गया है। जो लोग इसे एक बार वैज्ञानिक दृष्टि से पढ़ेंगे उन्हें हज़ारों वर्ष पुरानी उस ऋषि मेधा के ज्ञान की सीमाओं के विषय में जान कर आश्चर्य होगा। इक्कीसवी सदी के इस आधुनिक काल में इस सृष्टि की उतपत्ति और मनुष्य के प्रकृति एवं अपनी भीतरी संरचना को लेकर दिया गया ज्ञान अद्भुत है।
इस अध्याय में पहली बार पुनर्जन्म का उल्लेख बड़े ही मुखर रूप में आता है। इसी अध्याय में बताया गया है की यह समूची सृष्टि किसी अव्यक्त से उत्पन्न है और वह व्यक्त हो कर उसी में विलीन हो जाती है। This entire creation is a manifestation from the unmanifest; and it shall again have its involution into the same.
आपको यह अध्याय पढ़ने के बाद ऐसा प्रतीत होगा की दिमाग की नई खिड़की खुल गई है। आपसे हमारा निवेदन है की कृपया एक श्लोक के मर्म को जानने हेतु कम से कम एक सप्ताह तक नित्य पढ़े। गीता तकिये के नीचे रख कर सोने वाला ग्रन्थ है।
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