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Pratikraman in English (eBook)

Awashyak Sutra
Type: e-book
Genre: Religion & Spirituality
Language: Hindi
Price: ₹100
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

This book is a humble effort by the author of translating Prakrit and Hindi text of Jain Awashyak Sutra(Sthanakwasi Shrawak Pratikraman ) in English. This way the message of Jinvani can be spread among youngstirs also.Originally Awashyak Sutra was given in Prakrit, but with the changing time and languages , it has been a tradition to replace some of the text of Prakrit to local language to the Awashyak Sutra. Resultantly we have Gujaratiand Hindi versions of Awashyak Sutra.Need of an English Pratikraman was felt for the next generation of Jain followers . In big cities most of the children who come to sthanakas , their educational background is from English as medium of instruction. Understanding and absorbing difficult Hindi terminology is a reason of disinterest towards Jain rituals amongst them. The translated text of Awashyak sutra given in this book will surely help our upcoming generation in understanding the depth of Jinvani. An effort has been made to give correct translation and keep the original meaning intact , but if some gaps are found , intellectual guides of the field are requested to make corrections and guide us. Micchami Dukkadam.
यह पुस्तक आवश्यक सूत्र (स्थानकवासी श्रावक प्रतिक्रमण) के पाठों को अंग्रेज़ी में अनुवाद कर पाठकों के समक्ष रखने का लेखिका का एक विनम्र प्रयास है, जिससे जिनवाणी को अगली पीढ़ी तक भी पहुँचाया जा सकेl मूलतः आचार्यों द्वारा आवश्यक सूत्र के पाठ प्राकृत भाषा में दिए गए थे किन्तु यह परंपरा रही है कि काल और क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए इसके कुछ पाठों को स्थानीय भाषाओँ में समय समय पर रूपांतरित किया गया फलत: हमें प्रतिक्रमण के हिंदी गुजराती, पंजाबी आदि कई संस्करण प्राप्त हुएl युवा पीढ़ी के लिए आवश्यक सूत्र को सरल बना कर समझाने हेतु अंग्रेज़ी अनुवाद की आवश्यकता अनुभव की गयी क्योंकि बड़े शहरों में स्थानकों में आने वाला बाल वर्ग अधिकतर अग्रेज़ी भाषा के माध्यम से पढाई करने वाला है और उन्हें संस्कृत मिश्रित हिंदी भाषा समझने में कठिनाई आती है जिससे उनका रुझान जैन क्रिया कलापों के प्रति कम होता दिखाई देता हैl आशा है यह प्रयास युवा पीढ़ी को जिनवाणी की ओर आकर्षित करने में सफल होगाl अनुवाद को प्रस्तुत करने में यद्यपि प्रतिक्रमण के मूल स्वरुप को अक्षुण्ण बनाये रखने का भरसक प्रयत्न किया गे है परन्तु फिर भी लेखिका की छद्मस्थ एवं सीमित बुद्धि के कारण कहीं कोई त्रुटी रह गयी हो तो बुद्धि जनों से निवेदन है कि भूल सुधार कर हमें लाभान्वित करेंl मिच्छामि दुक्कडंl

About the Author

The author of this book, Dr. Alka Jain is an author with a unique approach in her writings. Her previous book in Hindi ‘तनाव से मुक्ति’ has thrown light on jaina ways of stress management. Her research work on Jaina literature has been showing up for last many years on national and internation platforms. She is a Ph. D degree holder in Commerce but her work shows interdisciplinary approach in research. She has been actively searching for concepts of management in Jain literature. Other areas of research are management approaches of various industries in modern economic world. Here research papers on the topic have been published in many reputed national and international journals.
Her work experience from industries and academic field gives her a deep insight to understand the concepts of management from not only theoretical but practical point of view also.It is her hobby to explore the elements of business management in other disciplines of education. Currently she is working on linguistic approach in business management also and research work is under publication. The readers will surely enjoy the reading of her books and work.
इस पुस्तक की लेखिका डॉ. अलका जैन के लेखन की अपनी विलक्षण विशेषता है] उनकी पिछली पुस्तक ‘तनाव से मुक्ति’ में उन्होंने जैन सिद्धांतों के अनुसार तनाव प्रबंधन एवं मुक्ति पर प्रकाश डाला है] पिछले कई वर्षों से जैन धर्म एवं दर्शन से सम्बंधित उनके शोध कार्य राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित होते रहे है] यद्यपि उनकी पी एच डी की डिग्री तो वाणिज्य विभाग से है किन्तु उनके शोध कार्य में एक से अधिक विभागों की अंतरंगता की झलक प्राप्त होती है] एक ओर वे जैन साहित्य में प्रबंधन के सिद्धांतों को खोजने में कार्यरत हैं तो दूसरी ओर व्यापार प्रबंधन के क्षेत्र में विभिन्न उद्योगों का अध्ययन भी उनकी विशेषता रहा है] व्यापार प्रबंधन के क्षेत्र में भी उनका शोध कार्य समय समय पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाठकों के सामने आता रहता है]
उद्योग एवं शिक्षण इन दोनों का मिला जुला कार्यानुभव उनके नज़रिए को मात्र थ्योरेटिकल नहीं बनाये रखता अपितु उनके लेखन को एक प्रैक्टिकल दिशा प्रदान करता है] अन्य विभागों में भी प्रबंधन के घटकों को ढूँढना मानो उनका शौक ही बन गया है] इस समय वे व्यापार प्रबंधन के भाषात्मक पहलुओं पर भी शोध कर रही हैं जो प्रकाशन की ओर अग्रसर है] हमें विश्वास है कि पाठकगण उनके इस कार्य को पढ़ कर आनंद उठाएंगे एवं लाभान्वित भी होंगे]

Book Details

Publisher: Self
Number of Pages: 189
Availability: Available for Download (e-book)

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