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This book is a humble effort by the author of translating Prakrit and Hindi text of Jain Awashyak Sutra(Sthanakwasi Shrawak Pratikraman ) in English. This way the message of Jinvani can be spread among youngstirs also.Originally Awashyak Sutra was given in Prakrit, but with the changing time and languages , it has been a tradition to replace some of the text of Prakrit to local language to the Awashyak Sutra. Resultantly we have Gujaratiand Hindi versions of Awashyak Sutra.Need of an English Pratikraman was felt for the next generation of Jain followers . In big cities most of the children who come to sthanakas , their educational background is from English as medium of instruction. Understanding and absorbing difficult Hindi terminology is a reason of disinterest towards Jain rituals amongst them. The translated text of Awashyak sutra given in this book will surely help our upcoming generation in understanding the depth of Jinvani. An effort has been made to give correct translation and keep the original meaning intact , but if some gaps are found , intellectual guides of the field are requested to make corrections and guide us. Micchami Dukkadam.
यह पुस्तक आवश्यक सूत्र (स्थानकवासी श्रावक प्रतिक्रमण) के पाठों को अंग्रेज़ी में अनुवाद कर पाठकों के समक्ष रखने का लेखिका का एक विनम्र प्रयास है, जिससे जिनवाणी को अगली पीढ़ी तक भी पहुँचाया जा सकेl मूलतः आचार्यों द्वारा आवश्यक सूत्र के पाठ प्राकृत भाषा में दिए गए थे किन्तु यह परंपरा रही है कि काल और क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए इसके कुछ पाठों को स्थानीय भाषाओँ में समय समय पर रूपांतरित किया गया फलत: हमें प्रतिक्रमण के हिंदी गुजराती, पंजाबी आदि कई संस्करण प्राप्त हुएl युवा पीढ़ी के लिए आवश्यक सूत्र को सरल बना कर समझाने हेतु अंग्रेज़ी अनुवाद की आवश्यकता अनुभव की गयी क्योंकि बड़े शहरों में स्थानकों में आने वाला बाल वर्ग अधिकतर अग्रेज़ी भाषा के माध्यम से पढाई करने वाला है और उन्हें संस्कृत मिश्रित हिंदी भाषा समझने में कठिनाई आती है जिससे उनका रुझान जैन क्रिया कलापों के प्रति कम होता दिखाई देता हैl आशा है यह प्रयास युवा पीढ़ी को जिनवाणी की ओर आकर्षित करने में सफल होगाl अनुवाद को प्रस्तुत करने में यद्यपि प्रतिक्रमण के मूल स्वरुप को अक्षुण्ण बनाये रखने का भरसक प्रयत्न किया गे है परन्तु फिर भी लेखिका की छद्मस्थ एवं सीमित बुद्धि के कारण कहीं कोई त्रुटी रह गयी हो तो बुद्धि जनों से निवेदन है कि भूल सुधार कर हमें लाभान्वित करेंl मिच्छामि दुक्कडंl
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