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इस किताब में आपको क्या मिलेगा...
1. रसोई क्या बनाए ? (प्लानिंग कैसे करे?)
2. फास्ट रसोई बनाने के आधुनिक तरीके.. अकसर स्त्रियों को समय क्यों लगता हैं?
3. बर्तन मांझने के आधुनिक तरीके
4. फटाफट बर्तन मांझ कर किचन से बाहर कैसे निकले?
5. थाली को साफ करने का साइन्स
6. पतीला साफ करने का साइन्स
7. बर्तनों का कम से कम इस्तेमाल भी कमाल की टिप है।
8. किचन के बर्तनों को अपडेट करने का समय आ गया है
9. किचन में फ्रीजर, मिक्सर, ओवन का सम्पूर्ण प्रभावी उपयोग कैसे करें?
10. स्त्रियाँ पुरुषों को बर्तन माँजने क्यों नहीं देती है?
11. क्या किचन में सिर्फ स्त्री ही काम करेगी, कि पुरुषों ने भी जिम्मेदारी सम्हालनी है?
12. स्त्री को किसने रोका है करियर करने से? किसने स्त्री को मना किया आगे बढने से?
13. किचन में एक स्त्री दूसरे स्त्री की दुश्मन कैसे बन जाती है? अर्थात साँस बहु के झगडे, ननद भौजाई के झगडे क्यों होते हैं?
14. पुरुष को माँ और पत्नी के झगडे को कैसे सुलझाना है?
15. परिवार प्रबंधन में बच्चों को कैसे ट्रेनिंग दे?
16. ज्यादा समय किचन में बिताने से कौन सी बीमारियाँ होती है?
17. हर एक माँ की शिकायत “बच्चा खाना ही नहीं खाता” इससे कैसे निपटे.
18. परम्परागत तरीके से बर्तन धोने और अनुचित कपड़े पहनने के कारण पति-पत्नी के बीच रोमांस खत्म हो गया है और, नौबत तलाक तक पहुंच गई है।
19. तथाकथित नारी मुक्ति आंदोलन और उसका भारतीय जीवन पर दुष्प्रभाव इतने हुए की एक स्त्री ही दूसरे स्त्री का शोषण करने लगी (काम वाली बाई कल्चर)..
20. कोक्रोचेस से कैसे बचे..
21. अपने बेटी के शादी के बाद उसे और उसके पति को जीने दे.. यही अगर आपकी माता, बुआ या बहन कर रही है तो सावधान..
22. पुरुषों ने रसोई कैसे बनानी है?
23. अपने पत्नी को समझे, साथ ही साथ अपने पति को समझे.
आखिर में ... सेवानिवृत्ति के बाद:
किचन, बर्तन मांजना, झाडू पोंछा इत्यादि दुर्लक्षित विषय पर कोई किताब लिखे ऐसा विचार क्यों आया ? क्योंकि एज्युकेशनल सिस्टम ने हमें डाक्टर, इंजीनियर, सी.ए. बनाया लेकिन घर गृहस्थी का कोई सिलेबस नहीं सिखाया गया।
स्त्री और पुरुष के कुदरती स्वभाव को पहचानना, एक दूसरे की इज्जत करना इसका कोई सिलेबस नहीं है। यह सब कुछ अपने परिवार में सिखाया जाता था। लेकिन अब पारिवारिक रचना में तेजी से बदलाव आया है। लडके लडकियाँ उच्च शिक्षा के लिए घर से दूर होस्टल में रहती है। या नौकरी के लिए बाहर रहती है। या साथ में रहने के बावजूद पढाई में ध्यान देने के लिए माँ ने उसे घर गृहस्थी के काम में नहीं जुटाया, अतः उसे ट्रेनिंग नहीं मिला।
पुरुषों को भी इस किताब से गाईड लाईन मिलेगी कि जब वह सिंगल रह रहे हैं तो किचन को कैसे मैनेज किया जाता है। उनके लिए तो यह किताब तो जैसे हैंड बुक है।
जब लडकी की शादी हो जाती है तब चाहे वो डाक्टर हो, या किसी बडे कम्पनी की एक्जिक्युटिव, कुछ पारिवारिक जिम्मेदारियाँ तो निभानी ही पडती है। लडकों को ट्रेनिंग नहीं दिया जा रहा है कि घर गृहस्थी को कैसे सम्हालते हैं। नई लडकी या रिश्तेदारों को सहज कैसे महसूस कराते हैं। क्योंकि वह भी अपना करियर बनाने में लगा है।
पिछले तीस सालों में ‘एक दम्पति एक बच्चा’ का सिस्टम आ गया तो पहले जमाने में दो तीन भाई बहन के साथ छोटी छोटी वस्तुओं को बाँटा जाता था वो प्रवृत्ति खत्म हुई। पूरा अटेंशन खुद को ही मिलना चाहिए यह वृत्ति आ गई। जिसके कारण विवाह के पश्चात समायोजन कठिन हो गया है। कितना कठिन कि नई दम्पति अपने बेड पर दूसरे पार्टनर को सोने नहीं देना चाहता। दो- दो महीने में ही डिवोर्स हो रहे हैं। ... डिवोर्स यह कोई समाधान नहीं है।
डिवोर्स के कारण भी इतने फालतू कि हँसी छूट जाए। तो मैंने पाया कि कुछ बुनियादी चीजों के उपर हमें काम करना पडेगा। बच्चे डाक्टर इंजीनियर बने हमसे भी ज्यादा टेक्नोलोजी में आगे बढे लेकिन उन्हें घर गृहस्थी के बारे में जीवनलक्षी ज्ञान नहीं मिल पा रहा है।
माता पिता तो बस यही कहते हैं ‘आप खुद पढे लिखे हो, खुद का डिसिजन खुद लो’-- घण्टा..!
क्या मतलब पढे लिखे हो? अरे जीवन के निर्णय कैसे लेते हैं इसके बारे में एक शब्द भी नहीं सिखाया गया। यह तो वही बात हो गई कि किसी सिविल इंजीनियर को बोल दिया जाए की पेशंट को हार्ट एटेक आया है अब उसका आपरेशन करो। (पेशंट मरेगा।)
जीवन की समृद्धि के साथ पीछे छूट गई कुछ बुनियादी बातें हमने आपके सामने रखने का प्रयास किया है। यह नायाब किताब केवल किचन, झाडू पोछा के बारे में नहीं है। यह है, वैवाहिक जीवन, शादी के बाद लफडा हुआ तो क्या करे, महिलाएँ पुरुष में क्या देखती है, पुरुष महिला में क्या देखता है.. इत्यादि..
यह किताब आपको सिखाती है वो छोटी छोटी बातें जो आप जानते भी हैं मगर नहीं भी जानते..
हल्के फुलके अंदाज में हमने इस गम्भीर विषय को मनोरंजक बनाया है। लिखते वक्त हमें महसूस हुआ कि इस विषय को और गहनता के साथ हम और गहराई तक ले जा सकते हैं । अतः इसे सीरीज के रूप में लिखा जाए, किंतु यह निर्भर है पाठकों के ऊपर कि उनका फीड्बैक कैसे है..
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