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Poems in Hindi by Dr. Kulwant Singh. You will like each and every poem. Few stanzas from some of the poems from this book are reproduced here -
डॉ. कुलवंत सिंह की हिंदी में कविताएँ. आपको हर कविता पसंद आएगी. इस पुस्तक से विभिन्न कविताओं के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं -
द्विज विस्मित कलरव विस्मृत, सुरभि मंजरी दिगंत विस्तृत,
नाचे मयूर झूमे प्रकृति, अंब वागेश्वरी संगीत निनादित।
गीतों में मेरे रस छंद ताल भर दे ।
कण - कण में जीवन स्पंदन, दिव्य रश्मियों से आलिंगन
सुखद अरुणिम ऊषा अनुराग, भर रही मधु, मंगल चेतन
मधुर रागिनी सजी हुई, जाग जाग है प्रात हुई।
नंदन कानन कुसुम मधुर गंध, तारक संग शशि नभ मलंद,
अनुराग मृदुल शिथिल अंग, रोम रोम मद पान करा दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
अधरों पे राग मलंद लिये, मद-मधु-रस मकरंद पिये,
नयनों में संसृति हर्ष लिये, सुंदर रचना कौन हो तुम ?
दिल पर कैसे काबू करूँ, तन्हा खुद से बातें करूँ,
मौसम फिर है बहका बहका, क्यूँ हो सताते, आओ पिया।
दुनिया में सबसे बड़ा गम यह नहीं कि इंसान मरते हैं,
गम है तो यह कि इंसान प्यार करना छोड़ देते हैं।
सच और झूठ का अंतर, मिटा दिया है हमने।
अब सच कहो यां झूठ, मायने वही रह जाते हैं।
विकल प्राण दुख से विह्वल, निरत व्यथा मिट जाने दो।
मथ डालो इस तृष्णा को, पूर्ण गरल बह जाने दो।
तप्त हृदय का त्याग दहकना, करुण कण्ठ का त्याग बिलखना,
क्षत - अंतस का छोड़ सुबकना, सजल नयन की रोको यमुना ।
एक किरण भी ज्योति की, आश जगाती मन में; एक हाथ भी कांधे पर, पुलक जगाती तन में;
आओ तान छेड़ें, खोया जहाँ सरगम है । आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥
सुप्त भाव थे, सुप्त विराग, मरु जीवन में सुप्त अनुराग,
तमस विषाद, वंचित रस राग, नीरव व्यथा, था कैसा अभाग।
दिग-दिगंत आह्लाद निनाद, दिव्य ज्योति, हलचल प्रमाद।
छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है।
अपमान गरल प्रतिकार करो, आर्त्तनाद कहीं होने न दे।
बन प्रलय स्वर हुंकार भरो, शासक को शासन सिखला दे।
पद दलितों की आवाज बनो, मूकों का चिर मौन मिटा दे।
कर असि धर विषधर नाश करो, सत्य न्याय सर्वत्र समा दे।
तपन सूर्य की वश कर लो, प्रचण्ड प्रदाह हृदय धर लो,
तूफानों को संग कर लो, शौर्य प्रबल अजेय धर लो।
नील-कण्ठ तो मै नही हूँ, लेकिन विष तो कण्ठ धरा है !
कवि होने की पीड़ा सह लूँ, क्यों दुख से बेचैन धरा है ?
हर युग में हो सत्य पराजित, शूली पर चढ़ें मसीहा क्यों ?
करतूतों से फिर हो लज्जित, उसी मसीहा को पूजें क्यों ?
क्या विडंबना है - कितने कोर्ट कचहरी खुलवाए,
लेकिन एक मुकदमा निपटाने को चार जन्म लेने पड़ जाएं !
क्या विडंबना है - बच्चे भगवान का रूप होते हैं,
लेकिन सबसे अधिक बाल मजदूर हमारे यहां ही होते हैं !
निर्भय करें जीवन, जहाँ मनु गया सहम है।
आओ दीप जलाएँ, गहराया जहाँ तम है ॥
इलेक्ट्रान है छोटा कितना, सुई नोक का खरब है जितना,
एटम में जब छलांग लगाए, ऊर्जा का इक अंश निकलता।
तेरी गोद जन्म एक वरदान, माँ स्वीकारो कोटि प्रणाम,
जननी जन्मभूमि स्वर्ग समान, अभिनंदन भूमि लोक कल्याण।
अहो भाग्य श्रम में जुटें, प्रशस्ति पथ प्रति पल डटें,
जन जन विकास मार्ग जुटें, आलोक प्रखर अज्ञान मिटे।
EXCELELNT
Each poem is a blend of emotion and thought,
Of rhythm and silence, with meanings half-caught.
A tapestry woven from memory and dreams,
Where truth flows quietly in metaphor streams.
It’s feeling shaped into carefully placed sound,
A dance of ideas where hearts are unbound.