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डॉ. श्रीमती तारा सिंह, स्वर्गविभा हिंदी वेबसाईट (www.swargvibha.com) एवं स्वर्गविभा ऑन लाइन पत्रिका की प्रधान संपादिका व प्रशासक ,36 पुस्तकों की रचयिता तथा देश-विदेश से 253 सम्मान/मानदोपाधि/पुरस्कार प्राप्त लेखिका (साहित्यकार) हैं | बचपन से ही प्राकृतिक सौन्दर्य एवं सादगी सदा इन्हें अपनी ओर आकर्षित करती रहीं हैं | इनका समस्त जीवन उत्तरदायित्व, परिवार, समाज के मन्दिर में समर्पित रहा | स्नेह, मैत्री और करुणा कि यह प्रतिमूर्ति, अपनी रचनाओं का ऐसा दीपक प्रज्वलित कर समाज के उस गलियारे में रख दी, जहाँ से युगों -युगों तक अँधेरे से गुजर रहे राहगीरों को उजाला मिल सके | इन्होंने लौकिक प्रेम से अलौकिक आस्था को एक सूत्र में बाँधकर, उस निराकार के साथ, प्राणी-जीवन के स्नेह -सम्बन्धों के दाम्पत्य बंधन की सृष्टि कर डाली और निराकार प्रभु के सामने अमरता को तुच्छ माना | उत्सर्ग की वेदी पर स्वयं को शून्य कर देने वाली तारा,वैराग्य साधना मुक्ति की आकांक्षा नहीं रखती | वह असंख्य बन्धनों के बीच रहती हुई, महानान्द्मय मुक्ति का स्वाद चखना चाहती है | अत: रचयिता अपनी कविताओं के माध्यम से, आते-जाते, जीवन के उन्माद, उल्लास,वेदना और विह्वलता को सृष्टि की सरसता की तरह देखती है |
साहित्य और संस्कृति के लिए पूर्णतया समर्पित कवयित्री, ने अपनी कविताओं में, जीवन-मृत्यु की वास्तविक सत्यता, सुख-दुःख, मिलन-बिछोह, पारिवारिक तथा सामाजिक उलझनों, समस्याओं एवं व्यक्तिगत अनुभूतियों के प्रसंगों को विशेष रूप से उजागर किया है |
इनकी मर्मस्पर्शी कविताओं में मानव का संवेगात्मक संस्कार प्रतिफलित होता दीखता है | फलत: कवयित्री का मानसिक गठन और उसकी क्रिया -प्रतिक्रिया व्यापक फलक पर दीखती है | अत: डॉ. तारा की कवितायेँ व्यक्तिगत रुचिमात्र नहीं रह जातीं | इस प्रकार लेखिका को किसी एक दृष्टिकोण से रेखांकित करने का प्रयास करना कठिन ही नहीं , दुराग्रहपूर्ण भी होगा |
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