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स्वर्गविभा वेबसाईट पत्रिका का यह उन्नीसवां अंक है | यह पत्रिका अनेकों लेखकों एवं चिंतकों का एक गुलदस्ता है | इस वर्ष यह कार्य अपेक्षाकृत अधिक दुष्कर एवं चुनौतीपूर्ण रहा | कारण कोविद 19 ने हर क्षेत्र की गतिविधियों को प्रभावित किया है | तथापि इस संक्रामक रोग से उत्पन्न तनावपूर्ण स्थितियों के बावजूद सठीक समय पर यह अंक निकल सके , हम इसका प्रयास करते रहे , और आप लोगों के पूर्ण सहयोग से यह अंक आपके समक्ष है |
कल करे जो आज कर , आज करे सो अब
पल में परलय होयेगी, बहुरि करोगे कब
संत कबीर के इस छोटे से दोहे में, समय के सदुपयोग की चेतावनी तो छिपी है ही | इसमें जीवन दर्शन का महत्वपूर्ण सार भी छिपा हुआ है |
मनुज जीवन दर्शन के अनुसार, जीवन की समस्त साधनाओं का चरम लक्ष्य मुक्ति प्रदान करना है | मुक्ति इच्छाओं और कर्मों के बंधन से छुटकारा पा लेने के बाद ही सुलभ हो सकती है | अर्थात् कोई भी कम हमें समय पर कर लेना चाहिये,क्योंकि इस क्षणभंगुर जीवन का एक पल भी गवाना ,समाज के साथ तो होगा ही, अपने आप के साथ भी अन्याय है | किसी भी काम को समय पर कर लेने से आत्मा एक अद्भुत आनंद का अनुभव करता है | मैं समझती हूँ , समय के एक क्षण का सदुपयोग, चरम सफलता की ओर एक सुनिश्चित और सुदृढ़ कदम है |
अंत में मैं अपने सभी साहित्यकार बंधुओं से अनुरोध करती हूँ , कि अब तक जिस प्रकार आप सबों ने मिलकर स्वर्गविभा को अपने प्यार और मोहब्बत से हिमालय की ऊँचाई दी है , भविष्य में इसी तरह साथ निभायेंगे |
इसी कामना के साथ , यह अंक आप सबों को भेंट करती हुई, अगले अंक तक के लिए विदा लेती हूँ |
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