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"जिंदगी और प्रेम" ई-पुस्तिका के रूप में संकलित काव्य-कृति है। घर के भीतर पलते प्रेम से लेकर शहर के चौराहों तक प्रेम की खोजबीन में हमारे रचनाकार मुखर हुए है। अनुभवों की सांझी विरासत लिए इन कवियों ने जिंदगी को परिभाषित करने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी है। साहित्य में शील के उच्च स्तर को छूकर इन कलमकारों ने भांति भांति से व्यंजना की भाषा में अपनी बात तो कहीं ही है और अभिधा के उत्तमोंत्तम परिधानों से कविता को अलंकृत कर पाठक मन को झंकृत कर दिया है। मैं कृष्ण चतुर्वेदी संकलित समस्त रचनाकारों का हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ। डॉ.सरिता शुक्ला ने प्रेम पुरुष श्रीकृष्ण की सखी श्यामा के माध्यम से देवत्व की अनुगामी भारतीयता से यह कहकर मीठी तकरार की है कि प्रेम में वादाखिलाफी आपने की है तो पुरुष जाति को आदर्श मिल गया है। कोटा, राजस्थान से मनोरंजन कुमार सिंह ने शास्त्रीय रूपकों के सहारे गढ़े प्रतिमानों के मध्य अपना नया शिल्प जड़ दिया है और बेहतरीन कविताएँ प्रस्तुत की है। साहित्य के आँगन में खड़ा ये कुशल कवि अपनी काव्य परंपरा से जुड़कर जब कविता लिखता है तो हिंदी को अच्छी कविताएं मिलती है। डॉ.सीमा शाहजी अपनी प्रौढ़ लेखनी जब भी उठाती है तो सार्थकता स्वयंमेव घटित होने लगती है।एक नया-नया चेहरा मदन मनोज के रूप में हरियाणा से हमारे सामने आता है और इनकी कविताएँ स्वानुभूति की गंध में सहज सरल रूप में अपनी बातें कहती है।उर्वशी आदित्य, डूंगरपुर से लिखने वाली अध्यापिका कवयित्री अपने घर-संसार में प्रेम के हजारों प्रकरण खोज लेती है। षटरस व्यंजनों के साथ प्रेमरस घोलने वाली इस युवा कवयित्री में भावों की अद्भुत गतिशीलता दिखाई देती है और भाषा तो अपने आप अपना काम करती है। इन्होंने छोटी-छोटी कविताओं से जिंदगी के बड़े केनवास में रंग भरकर कृति को खूबसूरत बनाता है।जालंधर (पंजाब)से युवा कवयित्री और पेशे से अध्यापिका कमलदीप कौर की प्रेम व्यंजना का मैं कायल हुआ हूँ। दिलों को छू लेने का हुनर इस कवयित्री में है। जैसे हृदय खोलकर रख दिया गया है..."कई रातें कांटों पे सोये हम....चलो कुछ भूल जाते है" और किसी पर इतना फिदा होना कि प्रेम के भंवर में जिंदगी मज़े से चल रही है। डॉ.मीनल प्रेम को पुलिंदों में बांधकर यह एहसास देती है कि हृदय में कसक आज भी है बेशक जिंदगी आगे बढ़ती चले।इनकी दोनों कविताएँ श्रेष्ठ तार्किक रत्नाकर की गोपियों की भांति गणनाओं में उलझाकर ज्ञानियों के भ्रम का निवारण कर उन्हें प्रेम की भाषा सिखाती है। जयपुर, राजस्थान से रंजीता गोस्वामी की कविताएं वक्त से शिकायत करती हुई जिंदगी से दो-चार होती है और हँस देती है कवयित्री यह कहते हुए कि"वक्त हमारा कभी नहीं आता।" लखीमपुर-खीरी, उत्तर प्रदेश से एक श्रेष्ठ कवि के रूप में राममोहन गुप्त हमारे बीच आते है। संवेदनाओं से भरे कवि ने जब और अब के बीच के अंतराल को संबंधों और रिश्तों के माध्यम से समृद्धि देते हुए अपने कवि होने का धर्म बखूबी निभाया है।"बांटकर दुःख-दर्द अपनों का,यही है पूरा होना सपनों का"कहते हुए कवि ने मनुष्य जीवन को शिक्षा, संस्कृति के उत्थान का माध्यम समझा है। देहरादून, उत्तराखंड से दीप गुप्ता ने जिंदगी के सफर को अपने नज़रिए से देखा है और यह सच है कि भाव हृदय में उठते है तभी कलाकार का मन मचलता है। छतरपुर, मध्यप्रदेश से हिंदी के सह प्रोफेसर डॉ.आशीष तिवारी 'आस' लिखते है कि.."कैसे कैसे हादसे होते रहते हैं रोज, फिर भी सहते और हँसते हम रहते हैं रोज।"कविता आसपास से गुज़रकर हमें दुश्चिंताओं से बाहर आने का मार्ग दिखा देती है। अभिषेक सिंह की ग़ज़लें प्रेम के दुर्निवार आकर्षण में डूबती-उतरती है और प्रेमी होने की मधुर पीड़ाओं में सुख पाती है। डॉ.गायत्री शर्मा इंदौर से आती है। मध्य-देश की हृदयवान काव्यधारा जब निकलती है तो क्षणभंगुर जीवन के बुलबुले अपना अस्तित्व विलगाते नज़र आते है।टूटे हुए भरोसे के साथ छूटे हुए किनारों तक जाने का कोई सोचे भी तो भला कैसे? इसलिए यह कवयित्री बीच धाराओं में वसंत ढूंढती है। अतः कह सकते हैं कि श्रेष्ठ रचनाकारों की श्रेष्ठ कविताओं से सजी यह काव्य-कृति एक सुखद संयोग की तरह बन गई है।
दिल्ली की प्रसिद्ध शायरा नेहा पण्डित जिम्मेदारियों के बीच हँसते रोते प्रेम को होना सिखा देती है।प्रथम पृष्ठ पर अंकित इनकी कविता "जिंदगी और प्रेम" के आपसी संबंधों की सामाजिक पारिवारिक संदर्भों में व्याख्या करती है तो इस युवा कवयित्री की समझ के साथ यह संग्रह आगे बढ़ता है। नेहा पण्डित में प्रेम दस्तावेजों के साथ आता है फिर भी दिल लूटने वालों को खुली छूट देकर ये कवयित्री प्रेम की अदालत में अनोखे न्याय करती है। इस काव्यमयी यात्रा के समस्त सहभागी कलमकारों का मैं कृष्ण चतुर्वेदी, बूंदी राजस्थान से एक बार फिर हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
बहुत खूब
शानदार संकलन, चित्रांकन और परिकल्पना भी, संकलक के आगामी विशेषांकों की प्रतीक्षा रहेगी : राम मोहन गुप्त