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द्वादश ज्योतिर्लिंग और 13वां अन्तिम ज्योतिर्लिंग (eBook)

Type: e-book
Genre: Politics & Society, Religion & Spirituality
Language: Hindi
Price: ₹200
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

विषय- सूची

भाग-1 : वंश एवं गोत्र
मानव सभ्यता का विकास और जाति की उत्पत्ति
अ. पौराणिक वंश
1. मनुर्भरत वंश की प्रियव्रत शाखा
2. मनुर्भरत वंश की उत्तानपाद शाखा

ब. ऐतिहासिक वंश
1. ब्रह्म वंश
2. सूर्य वंश
3. चन्द्र वंश

स. भविष्य के वंश
गोत्र
मनवन्तर
भाग-2 : काल, युग बोध एवं अवतार

सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के अनुसार काल, युग बोध एवं अवतार

भाग-3 : शिव और ज्योतिर्लिंग
शिव
ज्योतिर्लिंग : अर्थ
योगेश्वर (ज्ञान का विश्वरूप) और भोगेश्वर (कर्मज्ञान का विश्वरूप)

भाग-4 : द्वादश ज्योतिर्लिंग (अदृश्य काल)
01. सोमनाथ
02. मल्लिकार्जुन
03. महाकालेश्वर
04. ओमकारेश्वर
05. केदारनाथ
06. श्रीभीमशंकर
07. श्रीकाशी विश्वनाथ
08. श्रीत्रयम्बकेश्वर
09. श्रीवैद्यनाथ
10. श्रीनागेश्वर
11. श्रीरामेश्वर
12. श्रीघुश्मेश्वर
भाग-5 : काशी

काशी
मोक्षदायिनी काशी और जीवनदायिनी सत्यकाशी : अर्थ व प्रतीक चिन्ह

भाग-6 : 13वां और अन्तिम ज्योतिर्लिंग (दृश्य काल)

13वां और अन्तिम भोगेश्वरनाथ
“सम्पूर्ण मानक” का विकास भारतीय आध्यात्म-दर्शन का मूल और अन्तिम लक्ष्य
भाग-7 : 2020 - मन का नवीनीकरण

प्रारम्भ के पहले दिव्य-दृष्टि
व्यवस्था के परिवर्तन या सत्यीकरण का पहला प्रारूप और उसकी कार्य विधि
मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा
नये समाज के निर्माण का आधार
सन् 2020 ई0 - मन का नवीनीकरण
ईश्वरीय समाज
ईश्वरीय समाज निर्माण की कार्यवाही आधारित पुस्तकें
विश्व-नागरिक धर्म का धर्मयुक्त धर्मशास्त्र - कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचम वेदीय श्रृंखला
विश्व-राज्य धर्म का धर्मनिरपेक्ष धर्मशास्त्र - विश्वमानक शून्य-मन की गुणवत्ता का विश्वमानक (WS-0) श्रृंखला
प्राकृतिक सत्य मिशन (Natural Truth Mission)
विश्वधर्म मन्दिर
सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय
(Satyakashi Universal Integration Science University-SUISU)
“सत्यकाशी महायोजना” (वाराणसी-विन्ध्याचल-शिवद्वार-सोनभद्र के बीच का क्षेत्र)
डब्ल्यू.एस. (WS)-000:ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवं स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
हमारा व्यवसाय डब्ल्यू.एस. (WS)-000 के अनुसार
विश्व का मूल मन्त्र-“जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान-जय ज्ञान-जय कर्मज्ञान”
एक विश्व - श्रेष्ठ विश्व के निर्माण के लिए आवश्यक कार्य

भाग-8 : समष्टि धर्म दृष्टि

अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह”विश्वमानव” का मानवों के नाम खुला चुनौती पत्र
अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार का काशी-सत्यकाशी क्षेत्र से विश्व शान्ति का अन्तिम सत्य-सन्देश

About the Author

कल्कि महाअवतार के रूप में स्वयं को प्रकट करते श्री लव कुश सिंह “विश्वमानव” द्वारा प्रकटीकृत ज्ञान-कर्मज्ञान न तो किसी के मार्गदर्शन से है और न ही शैक्षिक विषय के रूप में उनका विषय रहा है। न तो वे किसी पद पर कभी सेवारत रहे, न ही किसी राजनीतिक-धार्मिक संस्था के सदस्य रहे। एक नागरिक का अपने विश्व-राष्ट्र के प्रति कत्र्तव्य के वे सर्वोच्च उदाहरण हैं। साथ ही राष्ट्रीय बौद्धिक क्षमता के प्रतीक हैं।

Book Details

Publisher: lava kush singh
Number of Pages: 204
Availability: Available for Download (e-book)

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