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श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ का यह मानसिक कार्य इस स्थिति तक योग्यता रखता है कि वैश्विक सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक एकीकरण सहित विश्व एकता-शान्ति-स्थिरता-विकास के लिए जो भी कार्य योजना हो उसे देश व संयुक्त राष्ट्र संघ अपने शासकीय कानून के अनुसार आसानी से प्राप्त कर सकता है।
प्रस्तुत पुस्तक ” सम्पूर्ण क्रान्ति-अन्तिम कार्य योजना“, विश्वशास्त्र के आविष्कारों का व्यावहारिक जीवन (व्यष्टि और समष्टि) में उपयोगिता का सारांश-अंश भाग है। चूँकि प्रस्तुत पुस्तक क्रियात्मक है अर्थात् भारत व विश्व के नेतृत्वकर्ताओं द्वारा व्यक्त विचार का शासनिक प्रणाली के अनुसार स्थापना की प्रक्रिया पर आधारित है इसलिए समाज व राज्य के विभिन्न स्तर के नेतृत्वकर्ताओं जैसे - समाजसेवी, लेखक, विचारक, धर्माचार्य, राजनीतिक नेतागण, विधायक, सांसद, शिक्षण क्षेत्र से जुड़े आचार्य इत्यादि सहित आम नागरिक को इस पुस्तक का अध्ययन अवश्य करना चाहिए जिससे उन्हें अपने आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के सम्बन्ध में आधारभूत दृष्टि प्राप्त हो और ”एक भारत - श्रेष्ठ भारत“ तथा ”नया भारत (New India)“ के विचार को प्राप्त करने के इस अन्तिम मार्ग पर कार्यवाही प्रारम्भ हो सके।
अवतारी परम्परा के इतिहास के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि अवतार गण मानक ब्रह्माण्डीय गणतन्त्र के अनुसार मानवीय व्यवस्था में उसके समरूप स्थापना करना, उनका उद्देश्य रहा है। इस क्रम में अवतारों का मूल लक्ष्य और कार्य का केन्द्र बिन्दु मानव के मस्तिष्क के विकास व व्यवस्था सत्यीकरण ही रहा है। कभी किसी अवतार ने कोई नया सम्प्रदाय, जीवन पद्धति और उपासना पद्धति की स्थापना नहीं की। अवतारगण स्वतन्त्रता के पक्षधर रहें हैं इसलिए वे मनुष्य के लिए बन्धनस्वरूप कोई नियम नहीं दिये। नियम देते हुये भी ये स्वतन्त्रता दिये ”जैसी तुम्हारी इच्छा वैसा करो।“ अवतारगण के शरीर से मुक्त होने के बाद निश्चित रूप से ऐसा हुआ है कि बाद के लोग उनके नाम पर नया सम्प्रदाय, जीवन पद्धति और उपासना पद्धति की स्थापना कर दिये।
प्रस्तुत पुस्तक की उपयोगिता पर विचार हो, जिससे शिक्षा के लिए महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटीन का कथन- ”शिक्षा, तथ्यों को सिखना नहीं बल्कि मस्तिष्क को चिंतनयुक्त बनाने का प्रशिक्षण है (Education is not the learning of facts, but the training of the mind to think)“ सिद्ध हो जाये। पूर्व राष्ट्रपति स्व0 ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी के कथन- ”नवीनता के द्वारा ही ज्ञान को धन में बदला जा सकता है।“ के यथार्थ रूप हैं श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“।
सत्य रूप में इस पुस्तक में जो कुछ है उस पर यह कहा जा सकता है – “यही है भारत” और “यह ही है राष्ट्रवाद की मुख्यधारा” और “यह ही है विकास की मुख्यधारा”
”विश्वशास्त्र“ के समीक्षक द्वय
-डॅा0 कन्हैया लाल, एम.ए., एम.फिल.पीएच.डी (समाजशास्त्र-बी.एच.यू.)
निवास-घासीपुर बसाढ़ी, अधवार, चुनार, मीरजापुर (उ0 प्र0)-231304, भारत
-डॅा0 राम व्यास सिंह, एम.ए., पीएच.डी (योग, आई.एम.एस-बी.एच.यू.)
निवास-कोलना, चुनार, मीरजापुर (उ0 प्र0)-231304, भारत
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