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Shahi Funeral

Shahi Funeral

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chinmaybhatt 9 years, 1 month ago Verified Buyer

Re: Shahi Funeral (e-book)

नए मौलिक विचारों के अकाल के इस युग में लेखक की संकल्पना जिसमे ''व्यावसायिक हितों को मनुष्य की मृत्यु शय्या तक साधे रखना पूंजीवाद का एक नया आयाम है'' विचार को अत्यंत मनोरंजक रूप से परिभाषित एवं परिलक्षित करने के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं l साथ ही यह हास्य व्यंग ये सोचने पर मजबूर करता है कि बढ़ता पूंजीवाद आत्मा ,संवेदना ,मानवीयता से परे नश्वर शरीर की '' मार्केटिंग एवं प्रेजेन्टेशन '' को अधिक महत्त्व दे रहा है l

Ashok jain manthan 9 years, 1 month ago

Re: Shahi Funeral (e-book)

लोकेश पालीवाल का शाही फ्यूनरल पढ़ने के बाद मज़ा आया| लेखक ने कहा तो है माध्यम वर्गीय मोहन लाल परन्तु नाटक का नाम शाही फ्यूनरल रखा ये भी एक व्यंग ही है आज की इस अंधी भागती दुनिया का कि इसमें हम चाहते क्या है ये पता नहीं है | दूसरों के देखा देखी अपने ऊपरी सम्मान को दिखाने के लिए अपने बच्चों को अच्छा पड़ा लिखा कर मोटी तनख्वाह के लालच में या बच्चे की ख्वाइश को पूरा करने विदेश भेज देते है | इन बुजुर्ग का जीवन तो अकेले ही दर्द को झेलते गुजरा परन्तु मरने के बाद भी उनका क्रिया कर्म करवाने के लिए एक इवेंट कंपनी को ठेका देने का विषय अच्छा लगा | उसके बात जो नाटक में हास्य पैदा किया गया वह काफी मजेदार भी था और कुछ सोचने को मजबूर भी करता है |इवेंट कंपनी द्वारा जैसे तैसे क्रिया कर्म करने की तैयारी में निर्देशक के पास भी बहुत कुछ करने को है और पत्रो के पास भी | नाटक मजेदार है हास्य व्यंग से भरा हुवा , मंच पर दर्शको को आनंद दिलवाएगा |
अशोक जैन "मंथन"