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अपने इस कविता संग्रह ‘गमे हिज्रां’ के बारे में केवल इतना ही कहूंगी कि यह सदाऐं उस बेचैनी की है जिन में सुकून भी है और बेकरारी भी है। यह ऐसी सदाऐं हैं जो कभी तड़पाती है – कभी तरसाती है और कभी बेआवाज़ सिसकने पर मजबूर भी करती है। ज़रूरी नहीं कि यह ‘सदाऐं’ सुनाई भी दें – यह केवल मेहसूस की जासकती हैं।
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