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.........”नहीं रात बहुत हो चुकी हैं। मैं घर जा रहा हूं । किसी और दिन चाय पिलेंगे ।“ कह कर रामू काका तो चले गये । लङकी को तुरन्त ही अंदर लाया गया । उसके पापा ने उससे पूछा
...”.तू कहीं उस भूत महल मे गयी थी क्या?“
..... ”.नहीं पापा मैं। रस्ता भूल गयी थी और भकटते हुए वहां पहुंच गयी । “
............. ” उस भूत बंगले के अंदर तो नहीं गयी क्या ? “
............ ” नहीं पापा । “
....... ” .तो चलो खाना खा लो । “
.......... ” .पापा आप भी खालो। “ कह कर लङकी भी खाने लगी । पूरें परिवार ने खाना खाया और अपने अपने कमरे मे सोने पहुंच गये ।
यही कोई रात के 12 बजे थे ।किसी के रोने की आवाज लङकी के भाई जिसका नाम राजू था ने सुनी । उसने आखें खोली । उसके कमरे की एक खिङकी बाहर खुलती थी । उसने देखा की रोने की आवाज को दबाया जा रहा है । वह तेजी से अपने बिस्तर से खङा हुआ और ध्यान से सुना तो आवाज निरन्तर दूर जा रही थी। उसने खिङकी खोली तो उसने देखा की सामने दूर एक बच्ची अपने आप हवा मे उङकर जा रही थी। उसका चेहरा पसीने पसीने हो गया । पर हिम्मत करके वह तेजी से दरवाजा खोल कर बाहर भागा । और धीरे धीरे बच्ची का पीछे जाने लगा । रात बहुत हो चुकी थी। चारो ओर सन्नाटा के सिवाय कुछ नहीं था। उसके कदम एक दम से धीरे धीरे चल रहे थे । वह इस वक्त सिर्फ यही सोच रहा था कि आखिकार कैसे बच्ची को बचाया जाए ? बच्ची हवा के अंदर उङकर निरन्तर पहाङी की ओर बढ रही थी। यह पहाङी यहां से कुछ ही दूरी पर थी । राजू इस तरह से उसके पीछे जा रहा था कि वह किसी को न दिखे । वह कुछ देर और उसके पीछे चला । उसने देखा की बच्ची अब हवा के अंदर उङना बंद हो गयी है। वह भी एक दम से रुक गया । यह जगह पाहङी से कुछ ही दूर थी। अचानक वह हैरान रह गया । एक दम से हैरान उसके होस उङ गये । उसने देखा कि अचानक जमीन फटी और बच्ची जमीन के अंदर चली गयी ।
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