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₹ 370
कुसुम कुमार वास्तव में फूलों के स्वभाव वाला था, कभी किसी का अहित न सोचता था, व्यवहार और स्वभाव इतना मधुर कि परायों को भी अपना बनते देर न लगता था। स्वयं खुश रहना और दूसरों को हँसाते रहना ही उसका स्वभाव था। इसी तरह निर्झरिणी भी थी, जैसा नाम वैसा ही स्वभाव, बिल्कुल पानी की तरह। मन में अपने पराये, ऊँच-नीच का भेद न था, इस दुनियादरी का कोई भी बन्धन उसके लिए बन्धन न था, बल्कि स्वच्छ एवं सामान्य तरीके से उसके साथ सामन्जस्य स्थापित कर लेना ही उसका स्वभाव था। नीर खुले दिमाग की किन्तु शुद्ध विचारों की लड़की थी, उन्मुक्तता तो थी किन्तु उदण्डता न थी, इस लिए प्रेम एवं सादगी से भरा व्यवहार किसी को भी अपना बना लेने के लिए पर्याप्त था। ईश्वर प्रदत्त उसका अप्रतिम सौन्दर्य तो उसके चरित्र में चार चाँद लगाता था। स्वभावतः एक होने के कारण कुसुम कुमार और नीर का मन एक दूसरे से जुड़ गया। नीर को ऐसा लगा जैसे कुसुम कुमार उसके हृदय में कुसुम की तरह ही खिल गया है और उसके तन-मन को अपनी खुशबू से पवित्र किए दे रहा हो। कुसुम कुमार का भी कुछ ऐसा ही हाल था, ऐसा लगा जैसे नीर उसके शरीर के नस-नस में समाहित हो गयी है और उसके शरीर की प्रत्येक कोशिका नीरमय हो गयी है। पहली ही मुलाकात में एक दूसरे के बारे में जानकर भी, एक दूसरे के हृदय में एक दूसरे के लिए एक अजनबी किन्तु प्रबल आकर्षण लिए, अपने-अपने रास्ते चले गये। एक बात न जान सके कि उनका मिलना, फिर कब, कहाँ और कैसे होगा, दोनों एक दूसरे से इस बारे में कुछ पूछ भी न सके।
इंटरव्यू देकर लौटते समय दोनों के मन में यह बात थी कि शायद पुनः ट्रेन में भेंट होगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नियति को यह मंजूर न था। सब कुछ इंसान के चाहने से ही तो होता नहीं है, नियति की भी अपनी एक अहमियत होती है।
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