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₹ 257
सरस काव्य-धारा यह,
निर्विघ्न,निरन्तर हो प्रवाहित।
जिसमें है असीम,अथाह,
ज्ञान और सुख समाहित।
मानस-हंस जन-मानस में,
ज्ञान का दीप करे प्रज्वलित।
जिसमें प्रेम-पुरातन अखण्ड रहे,
भक्ति पथ से हो न विचलित।
सृजन यह सृजक बने,
बने प्रेरणा निर्बल का।
हर शब्द बने इस काव्य का,
पर्याय अटूट सम्बल का।
जो भी इस काव्य-धारा को,
करे हृदय में प्रवाहित।
अमृत उसके जीवन में घुले,
रहे वह अनन्त काल तक जीवित।
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