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जज्बात_ए_कलम के रंगीन अंदाज़,
बिखेरने आया है शायराना अल्फ़ाज़,
बनकर भटके मुसाफिर का आफ़ताब,
रोशनी ले आया है शायराना अल्फ़ाज़,
बीते लम्हों की कुछ रूहानी याद,
पिरोने आया है शायराना अल्फ़ाज़,
दिल को चुभते टूटे बिखरे से ख्वाब,
संजोने आया है शायराना अल्फ़ाज़।।
अल्फ़ाज़ जब अहसास से मिलते हैं तो नज़्म बन जाते हैं। नज़्म वो, जिसका हर अल्फ़ाज़, दिल को छू जाता है। वो शक्स जिसका शायराना अंदाज़, "शायराना अल्फ़ाज़" बन जाए, वहीं तो जहां में शायर कहलाता है। "शायराना अल्फ़ाज़" एक पहल है, कुछ कहे अनकहे एहसासों के नाम, रोमांचित करने वाली नज्मों के नाम।
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