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Bhakti Bhavambud (eBook)

Poetry
Type: e-book
Genre: Poetry, Religion & Spirituality
Language: Hindi
Price: ₹90
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

भावाम्बुद अन्तः की सोपान-सरणि है जो भक्ति की उस असीम गहराई को नापने का प्रयास करती है जिसे सहृदय जन भगवद्भक्ति संज्ञा से विभूषित करते हैं। भक्ति साहित्य के संस्कृत ग्रंथों के अतिरिक्त अन्यत्र इसकी सुरभि कम बिखरी दिखती है। नारद भक्ति सूत्र अपने आप में ’परम प्रेमरूपा’ अनिर्वचनीया और सा तु पराभक्तिरीश्वरे का अनुपम सुधा-स्वादमय थाल परोसती है। नारद भक्ति सूत्र और उसी प्रकार शांडिल्य भक्ति सूत्र परमात्म भक्ति विवेचन के दो नेत्र हैं। इनकी अतल गहराई में डूबने वाला अनायास ही परिवर्तन की एक मधुमयी धारा में बह जाता है। आचार्यों ने इसका सैद्धान्तिक विवेचन किया है, प्राज्ञों ने इसका मौलिक शील निरूपण किया है उसी प्रकार भावुकों ने इसका रसास्वादन रसमालयं के रूप में प्राप्त किया है। अर्वाचीन चिन्तक, स्वयं में एक अनमोल रत्न, एक अद्भुत भाव प्रवण हीरा के रूप में आचार्य श्री रजनीश ’ओशो’ ने इसकी बड़ी ही मार्मिक विवेचना प्रस्तुत की है। यह इतनी सुगम है, सुस्वादु है और सुलभ है कि इसे छोड़ते नहीं बनता। भक्ति भावाम्बुद इसी ओशो की विचारधारा का काव्यात्मक परिमण्डन है। न शब्दशः व्याख्या है, न अर्थगत ऊहापोह है, न वाक् सिद्धि का द्रविण प्राणायाम है, न प्रदर्शन की संगति है। यहाँ सब सहजोच्छ्वास है। लगता है स्वयं नारद ही एवं शांडिल्य ही जो कहना चाहते हैं वो कह रहे हैं। यही विवेचन, यही भावरस, यही सरल सुगम हृदयस्पर्शिता इस रचना में स्वांतःसुखाय प्रस्तुत है।

About the Author

वाराणसी जनपद के पूर्ववर्ती सीमा में स्थित ग्रामीण अंचल के छोटे से गाँव भटपुरवा में जन्म। जीवन के १० वर्ष शिक्षा सम्पादन में बिहार के बक्सर अंचल एवं पाटलिपुत्र में बीते। बी०ए० आनर्स (अंग्रेजी), एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वाराणसी की नागरी प्रचारिणी सभा में एक वर्ष से अधिक की अवधि तक हस्तलिखित संस्कृत ग्रंथों के अनुक्रम एवं परिशिष्ठ लेखन का कार्य। एल०टी० एवं साहित्यरत्न की उपाधि से संयुक्त। पुनः चन्दौली जनपद के सकलडीहा इण्टरमीडिएट कालेज में अध्यापन। अद्यावधि अंग्रेजी प्रवक्ता के कार्य का सम्पादन करते हुए सेवा से अवकाश। साहित्य में काव्य रचनाओं का प्रणयन, यथा ’टेर रहा है मुरलीधर’, ’नौमि गोपाल बालम्’, ’करो भक्ति जिज्ञासा’, गीता भावानुवाद, गीतांजलि काव्यानुवाद, सौन्दर्य लहरी काव्यानुवाद आदि का प्रणयन। लोकभाषा भोजपुरी के क्षेत्र में लोकगीतों का सृजन एवं शैलबाला शतक जैसी काव्य-कृति की रचना। एकांकी नाटकों का मंचानुकूल सृजन। अवकाशोपरांत भी आलोचना एवं समीक्षा कार्यों में संलग्न।

Book Details

Publisher: Prem Narayan Pandey
Number of Pages: 212
Availability: Available for Download (e-book)

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