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पता नहीं कहाँ से तीन पहलवान लड़के अलादीन के जिन्न की तरह एकदम से प्रकट हो गए। तीनों की आँखों में आक्रोश दिख रहा था। समझ नहीं आया ये पहलवान लड़के स्कूल की यूनिफार्म में क्या कर रहे थे? इन्हें तो लगोंट पहने पहलवानी या कुश्ती के मैदान में होना चाहिए था। हम दोनों अक्कू और मैं तो अजय के पीछे से फटाक से गायब हो गए। हमें उन पहलवानो से अपनी हड्डियां तुड़बाने का शौक थोड़े था। कुछ देर बाद अजय फूटी आंख, टूटी नाक और लाल गाल लेकर हमारे पास आता है।
अक्कू -
"क्यों बेटा, आ गया स्वाद?"
मैं -
"किसी महान इंसान ने कहा है -
डोंट बी अ हीरो"
अजय -
"कमीनो इसी दिन के लिए तुम्हे पाल-पोषकर बड़ा किया था।"
अक्कू -
"चल हम तुझे ठंडी-ठंडी कोल्ड्रिंक पिलाते है।
तेरा दिमाग ठंडा हो जायेगा। "
ख़ैर अजय को झूंठ बोलने की सजा तो मिल गयी पर वो हमारा दोस्त था। अपने दोस्त की बैंड अगर खुद ही बजाएं तो मजा आता है लेकिन अपने दोस्त की बैंड कोई दूसरा बजाय तो गुस्सा आता है। लेकिन अगर दोस्त की बैंड बजाने वाला कोई पहलवान हो तो क्या ही कर सकते हैं, वस दोस्त को थोड़े ताने जरूर मार सकते हैं कि तेरी ही गलती थी, हम तो तेरे साथ थे, तूने ही झूंठ बोला था, एक लड़की को अब हम क्या कह सकते हैं आदि।
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