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गज़लगोई को उर्दु शायरी में सब से ऊन्चा स्थान दिया गया है I यही कारण है कि उर्दु शायरों में ऐसा कोई भी शायर नहीं है जिस ने गज़लगोई न की हो I राजेन्द्र पटवारी ‘नाशाद’ ने भी अपनी शायरी की शुरुवात 1965 में गज़लगोई से ही की है तथा लगभग पच्चास साल की अपनी साहित्यिक यात्रा में वह ज़्यादातर गज़लें ही लिखते रहे हैं I उनकी लिखी गज़लों में से कुछ गज़लें ‘मेरी गज़लें’ के इस संग्रह में शामिल हैं I
इस संग्रह में शामिल ‘नाशाद’ की गज़लें उनके निजी तुलनात्मक कथन, उन की सोच, उन के दृष्टिकोण तथा उन की भावुकता को व्यक्त करती हैं I आशा है कि पाठकों को पसन्द आऐंगी I
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