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दर्द ज्यादा है ,दवा थोड़ी है,120 ग़ज़लों का संग्रह है।
ग़ज़ल का चलन काफी पुराना है। फिर भी ग़ज़ल शब्द में अनोखा नयापन है।
भाषा और वाद के भेद से बहुत दूर रहकर व्यक्तिगत भेदभाव को नकारते हुए कट्टरपंथ से हटकर रचना की है।
सरल हिन्दी व उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल करते हुए "ग़ज़ल " लिखीं हैं , जिनका
उददेश्य सम्पूर्ण भाव को शेरों में रखकर संतृप्त करना है।
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