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गुरुकुल और सन्यास आश्रम- दम तोड़ते समाजो कि संजीवनी (eBook)

Type: e-book
Genre: Social Science, Self-Improvement
Language: Hindi
Price: ₹70
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF, EPUB

Description

पुस्तक विवरण

गुरुकुल और सन्यास आश्रम – दम तोड़ते समाजों की संजीवनी
(एक सामाजिक पुनर्जन्म की खोज)

जब परिवार बिखरते हैं, वृद्धजन उपेक्षित हो जाते हैं, शिक्षा केवल नौकरियों का जरिया बन जाती है और बच्चे अपनी जड़ों से कटकर आत्मग्लानि और दिशाहीनता में भटकते हैं — तब एक सभ्यता अपने मौलिक अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न उठती पाती है। यह पुस्तक उसी प्रश्न का उत्तर है — एक गहन, संवेदनशील, विचारोत्तेजक और पुनर्रचना की ओर ले जाने वाली यात्रा।

"गुरुकुल और सन्यास आश्रम – दम तोड़ते समाजों की संजीवनी" एक ऐसी दुर्लभ कृति है, जो केवल अतीत की महिमा गायन नहीं करती, बल्कि भविष्य के लिए एक ठोस, सांस्कृतिक और व्यावहारिक मॉडल प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक भारतीय परंपरा के चार आश्रमों — ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास — की वैज्ञानिक व्याख्या के साथ उन्हें आज के सामाजिक संदर्भ में पुनर्परिभाषित करती है।
लेखक एक सशक्त प्रस्ताव रखते हैं — एक समन्वित "गुरुकुल–सन्यास आश्रम मॉडल" का — जिसमें एक ही परिसर में वृद्धजनों के अनुभव और बालकों की शिक्षा को जोड़कर दो टूटती हुई पीढ़ियों के बीच संवाद की नई संभावनाएँ गढ़ी जाती हैं।

इस पुस्तक में आप पाएंगे:

1.वृद्धजन की उपेक्षा पर एक दार्शनिक चेतावनी,

2.बच्चों की शिक्षा का भारतीय दृष्टिकोण,

3.चरित्र निर्माण पर आधारित गुरुकुल प्रणाली की महत्ता,

4.सन्यास की संकल्पना का समकालीन पुनर्पाठ,

5.और एक समन्वित, व्यावहारिक, सांस्कृतिक-शैक्षिक नीति प्रस्ताव।

यह ग्रंथ केवल विचार नहीं है — यह एक योजना है। केवल आलोचना नहीं है — यह एक पुनर्निर्माण है। केवल साहित्य नहीं है — यह एक सामाजिक औषधि है।

शब्दशः पढ़ा जाए तो यह इतिहास है,
भाव से पढ़ा जाए तो यह साधना है।
और आत्मा से पढ़ा जाए तो यह— क्रांति है।

यदि आप एक शिक्षक हैं — तो यह पुस्तक आपको शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य बताएगी।
यदि आप एक माता-पिता हैं — तो यह पुस्तक आपके बच्चों के भविष्य की चिंता को दिशा देगी।
यदि आप एक नीति-निर्माता हैं — तो यह पुस्तक एक वैकल्पिक व्यवस्था का खाका खींचेगी।
और यदि आप एक संवेदनशील मनुष्य हैं — तो यह पुस्तक आपके भीतर के समाजसेवक को जगा देगी।

श्रेणी: भारतीय संस्कृति, शिक्षा दर्शन, सामाजिक पुनर्निर्माण, वृद्धजन अध्ययन, नीति प्रस्ताव

About the Author

लेखक परिचय

लेखक: रणबीर सिंह बैंसला, पिता: रोहताश सिंह बैंसला, माता: बालेश्वरी देवी (बल्लो),
जन्म तिथि: 5 मार्च 1979 – मिलिट्री हॉस्पिटल, हिंडन एयर फ़ोर्स स्टेशन, गाज़ियाबाद।
जन्म स्थान: घिटौरा – उत्तर प्रदेश राज्य के बागपत जिले में अवस्थित एक गाँव।
शिक्षा: एम.ए. (इतिहास) – चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश।

रणबीर सिंह बैंसला एक विचारशील लेखक हैं, जिनका जीवन अनुभव विविधताओं से परिपूर्ण है। उनके पिता भारतीय वायुसेना में कार्यरत थे, जिससे अनुशासन और राष्ट्र के प्रति समर्पण उनके संस्कारों में गहराई से समाहित है। वहीं, उनकी माता एक समर्पित ग्रामीण गृहणी थीं, जिन्होंने पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक संवेदनशीलता का बीज उनके व्यक्तित्व में बोया।
इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले रणबीर सिंह ने चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की और समाज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने तथा उसे समकालीन संदर्भों में प्रस्तुत करने की कला में निपुणता हासिल की।
लेखन के साथ-साथ वे रियल एस्टेट व्यवसाय में भी सक्रिय हैं। उनकी कार्यशैली में दूरदर्शिता, सामाजिक जागरूकता और सटीक निर्णय लेने की क्षमता स्पष्ट रूप से झलकती है। उनकी लेखनी न केवल ऐतिहासिक घटनाओं का दस्तावेज़ीकरण करती है, बल्कि समाज के बदलते पहलुओं को भी उजागर करती है।
उनका जीवन अनुभव, शिक्षा और व्यवसायिक दृष्टिकोण उन्हें एक बहुआयामी व्यक्तित्व प्रदान करता है, जो इतिहास के गूढ़ रहस्यों को वर्तमान की प्रासंगिकता के साथ जोड़ने में सक्षम है। रणबीर सिंह बैंसला अपने लेखन के माध्यम से समाज में जागरूकता और विचारों की स्पष्टता लाने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं।

Book Details

ISBN: 9789334368727
Publisher: Self Published
Number of Pages: 113
Availability: Available for Download (e-book)

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गुरुकुल और सन्यास आश्रम- दम तोड़ते समाजो कि संजीवनी

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