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पुस्तक विवरण
गुरुकुल और सन्यास आश्रम – दम तोड़ते समाजों की संजीवनी
(एक सामाजिक पुनर्जन्म की खोज)
जब परिवार बिखरते हैं, वृद्धजन उपेक्षित हो जाते हैं, शिक्षा केवल नौकरियों का जरिया बन जाती है और बच्चे अपनी जड़ों से कटकर आत्मग्लानि और दिशाहीनता में भटकते हैं — तब एक सभ्यता अपने मौलिक अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न उठती पाती है। यह पुस्तक उसी प्रश्न का उत्तर है — एक गहन, संवेदनशील, विचारोत्तेजक और पुनर्रचना की ओर ले जाने वाली यात्रा।
"गुरुकुल और सन्यास आश्रम – दम तोड़ते समाजों की संजीवनी" एक ऐसी दुर्लभ कृति है, जो केवल अतीत की महिमा गायन नहीं करती, बल्कि भविष्य के लिए एक ठोस, सांस्कृतिक और व्यावहारिक मॉडल प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक भारतीय परंपरा के चार आश्रमों — ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास — की वैज्ञानिक व्याख्या के साथ उन्हें आज के सामाजिक संदर्भ में पुनर्परिभाषित करती है।
लेखक एक सशक्त प्रस्ताव रखते हैं — एक समन्वित "गुरुकुल–सन्यास आश्रम मॉडल" का — जिसमें एक ही परिसर में वृद्धजनों के अनुभव और बालकों की शिक्षा को जोड़कर दो टूटती हुई पीढ़ियों के बीच संवाद की नई संभावनाएँ गढ़ी जाती हैं।
इस पुस्तक में आप पाएंगे:
1.वृद्धजन की उपेक्षा पर एक दार्शनिक चेतावनी,
2.बच्चों की शिक्षा का भारतीय दृष्टिकोण,
3.चरित्र निर्माण पर आधारित गुरुकुल प्रणाली की महत्ता,
4.सन्यास की संकल्पना का समकालीन पुनर्पाठ,
5.और एक समन्वित, व्यावहारिक, सांस्कृतिक-शैक्षिक नीति प्रस्ताव।
यह ग्रंथ केवल विचार नहीं है — यह एक योजना है। केवल आलोचना नहीं है — यह एक पुनर्निर्माण है। केवल साहित्य नहीं है — यह एक सामाजिक औषधि है।
शब्दशः पढ़ा जाए तो यह इतिहास है,
भाव से पढ़ा जाए तो यह साधना है।
और आत्मा से पढ़ा जाए तो यह— क्रांति है।
यदि आप एक शिक्षक हैं — तो यह पुस्तक आपको शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य बताएगी।
यदि आप एक माता-पिता हैं — तो यह पुस्तक आपके बच्चों के भविष्य की चिंता को दिशा देगी।
यदि आप एक नीति-निर्माता हैं — तो यह पुस्तक एक वैकल्पिक व्यवस्था का खाका खींचेगी।
और यदि आप एक संवेदनशील मनुष्य हैं — तो यह पुस्तक आपके भीतर के समाजसेवक को जगा देगी।
श्रेणी: भारतीय संस्कृति, शिक्षा दर्शन, सामाजिक पुनर्निर्माण, वृद्धजन अध्ययन, नीति प्रस्ताव
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