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हमारी बात
हमारे सभी पाठकों, रचनाकारों एवं श्रद्धेय जनों को नये वर्ष की आंतरिक और हार्दिक शुभकामनाएँ। मरुतृण, पिछली बार से, हरी-भरी नज़र आने लगी है। ख़ुशी है कि इसकी हरियाली अब कुछ दूर तक सहृदय पाठकों एवं रचनाकारों को नज़र आने लगी है। मरुतृण ने अब अपनी यात्रा का कदम इस प्रान्त से निकाल कर दूसरे प्रान्तों की ओर बढ़ा दिया है। इसमें अपनी रचनाओं एवं सुझाव का बहुमूल्य रत्न देकर श्रद्धेय-गण हमारा हौसला बढाये हैं। हम उन्हें हृदय की गहराई से नमन करते हैं। पिछली बार जब मरुतृण प्रकाशित हुई थी, 17 अक्टूबर 2014 को रवीन्द्र सदन की जीवनान्द सभागार में, तो इसके सबसे पहले सहयोग राशि देकर पत्रिका लेने के लिए हमारे परामर्शक सम्पादक महोदय एवं संपादक की भार्या को अभिवादन करते हैं। इस खण्ड को नये ढंग से सजाने की कोशिश की गई है। इंटरनेट की अथाह समुद्र की गहराईयों से प्रयोजन की छाया चित्र को खोज कर इस पत्रिका को सुन्दर बनाने का प्रयास किया गया है। हम उन सभी चित्रकारों के अभारी हैं जिनका अंकन-कला का नमूना हमने लिया है। इस पत्रिका के माध्यम से चित्रकला में छिपे आनन्द की धारा को बाहर निकाल, पाठकों के सामने रखकर बंगला के मशहूर शिल्पकार नंदलाल बोस की विचारधारा - "कला का निम्नतम ज्ञान हर किसी को होना चाहिए जिससे वो अपने जीवन में आनन्द-रस से वंचित न रह जाएँ " जो उन्होंने अपनी बंगला पुस्तक “दृष्टि ओ सृष्टि (अंग्रेजी अनुवाद- विजन एण्ड क्रियेशन )” में दर्शाने की कोशिश की है। हम वरिष्ठ कवि एवं लेखक प्रो. श्यामलाल उपाध्याय जी को नमन करते हैं कि उन्होंने हम जैसे उभरती पत्रिका को अपनी रचना देकर हमारा मान बढ़ाया। इस खण्ड में कविता विकास जी की तीनों कविताएँ शामिल करते हैं, जिन्हें उन्होंने, हमसे चलभाष पर वार्तालाप करने के बाद ईमेल से भेजें हैं । पार्थसारथि ’मौसम’ जी को भी हम इस बार अपने मध्य कविता के रूप में पाकर धन्य हैं। परामर्शक सम्पादक महोदय राजेन्द्र साह जी ने गंभीर विषय ’देवनागरी लिपि और राष्ट्रीय एकता’ पर अपना बहुत ही गम्भीर और आवश्यक विमर्श किया है, जो हमारे देश की ’हिन्दी जाति’ की दिशा बदलने की क्षमता रखती है। यह रचना उन पाठकों को भी उत्तर देती हैं जिन्हें शिकायत है कि इस पत्रिका में बंगला से रचनाएँ अधिक है, मौलिक रचनाओं की तुलना में। मगर हम यहाँ बता देना चाहते हैं कि हम पत्रिका के माध्यम से हिन्दी और बंगला की समानताओं को दर्शाने के कोशिश कर रहे हैं। इन दोनों भाषाओं में अनुवाद एक सेतु एवं एक सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत है।
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