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जीवन में जो कुछ देखा, सुना और जिया उसे ही शब्दों में समेटने का प्रयास किया है। वैसे सृजन के अविरल प्रवाह में जो विचार, भावनाएँ और कल्पनाएँ आईं उन सभी को अभिव्यक्ति का परिधान दिया। यह सच है कि अनुभूति की मुट्ठी में भावों की रोशनी बंद थी जब खुली तो उन्हीं सिमटी किरणों ने रचनाओं का रूप ग्रहण किया। जीवन में जब जी भाव आये मैंने उनको तब तब वैसे वैसे ही शब्दों में उकेरने की कोशिश की है.जब शुरू किया था लिखना तो अलंकार और छंद करते करते एक हुनर और करतब का एहसास होता था -पर अब उन कद जंजालों को तोड़कर खुद को जो अच्छा लगता है -वह लिखने में ज्यादा सुकून मिलता है -कुछ असल जिन्दगी की तरह. मेरी कविताओं और गुन्जनो में -संगीत का असर है -और संगीत में भी सुरों से ज्यादा बीट्स या रिदम का थोडा ज्यादा, क्यूंकि लिखते लिखते बहुत कम हुआ है की हाथो से ताल ना बज रहा हो.शायद वही ताल और मात्राए बरबस ही कागज़ पर निकल आती है.
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