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एक ऐसी आध्यात्मिक और भावनात्मक यात्रा है, जो पाठकों को कमालपुर की उस पवित्र धरा से जोड़ती है जहाँ बाबा शीतल दास जी ने अपने तप, साधना और दिव्यता से धरती को पवित्र किया।
यह पुस्तक सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि अनुभवों का संग्रह है—
• वह शांत हवा जो आज भी उनकी साधना को अपने साथ बहाकर ले जाती है,
• वह मिट्टी जिसमें उनके पदचिन्हों की शीतलता आज भी महसूस होती है,
• वह स्थान जहाँ उनकी अंतिम समाधि आज भी भक्तों को दिव्य ऊर्जा से भर देती है।
कहानी के हर पृष्ठ में
— श्रद्धा है
— अनुभूति है
— चमत्कार हैं
— और वह अदृश्य शक्ति है जो आज भी कमालपुर को सुरक्षित रखती है।
पुस्तक में उन अनकहे रहस्यों को भी समेटा गया है जो पीढ़ियों से सुनाए जाते रहे हैं—
संध्या की वह दिव्य रोशनी जो शिवलिंग और त्रिशूल पर पड़कर एक अद्भुत आभा रचती है,
मंदिर परिसर में दिखाई देने वाला नाग जो सदैव रक्षा का प्रतीक माना जाता है,
और वे जुड़वां कबूतर जो प्रेम और शांति का संदेश देते हुए मंदिर की छत पर बैठे दिखाई देते हैं।
बाबा शीतल दास की तपस्या, उनके चमत्कारों, भक्तों के अनुभवों और कमालपुर की आध्यात्मिक विरासत को एक सुंदर, सरल और भावनात्मक शैली में प्रस्तुत करती यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए है जो भक्ति को महसूस करना चाहता है, न कि सिर्फ पढ़ना।
यह सिर्फ एक पुस्तक नहीं—यह दिव्यता का अनुभव है।
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