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मित्रों,
हमारे बहुत ही घनिष्ट मित्र श्री अशोक कुमार जी ने कुछ रोज़ पहले आग्रह किया था कि मैं एक धारावाहिक ग्रामीण जीवन पर लिखूं। मैंने उनके इस विचार का स्वागत करते हुए इस की कहानी का ताना बुना है। हो सकता है कि उनके सपनों में ग्रामीण जीवन की वही मुंशी प्रेमचंद जी के ज़माने की तस्वीर रही हो लेकिन वास्तविकता में हिंदुस्तान के ग्रामीणांचल में बहुत बदलाव आया है। अब हमारा ग्रामीण परिपेक्ष्य अब वह नहीं रह गया जो एक शताब्दी पूर्व हुआ करता था। चुनावी राजनीति की उठक पटक ने आजकल के ग्रामीण परिदृश्य को एकदम बदल कर रख दिया है। यह कथानक ग्रामीण क्षेत्र के उन पढ़े लिखे नौजवानों की आशाओं और आकांक्षाओं को लेकर लिखा गया है जिनके सामने जीवन के संघर्ष में अपने लिए स्थान सुरक्षित करते हुए आगे बढ़ने की लालसा है। मैं नहीं कह सकता हूँ कि यह कथानक आपकी आकांक्षाओ पर कहाँ तक खरा उतरता है। आप इसे पढ़ें और आनंदित हों यही हमारी कामना है। बस और कुछ नहीं ...
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