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‘एक सफर छोटा-सा’ जीवन की तिर्यक चाल को सरल रेखा में परिभाषित करने का प्रयास है। कविता-दर-कविता आम जन की संवेदनशील भावनाओं को उजागर करने का भी प्रयास है और साथ ही प्रयास है व्यक्तिगत अनुभूतियों को समष्टि के साथ जोड़ने का।
भूत, वर्तमान एवं भविष्य को एक साथ देखने की ललक इस कविता-संग्रह में झलकती है। श्रंगार को सहजशील ढंग से कहना, सामाजिक विसंगतियों को व्यंग्य का रूप देना और विद्रूपताओं को उनके असली रूप में उजागर करना कवि की विशेषता है। जिस-जिस समय को कवि ने जिया है, उसके अस्तित्व को अपने प्रेम, आक्रोश एवं पीढ़ा द्वारा जिन्दा भी रखा है।
‘एक सफर छोटा-सा’ जिन्दगी को समग्र रूप से देखे जाने का आग्रह करता है और पाठक को उसके आस-पास की घटनाओं को फिर से विश्लेषित करने पर विवश करता है। यथार्थ की भूमि पर विविध आयामों का सफर सुखद अहसास कराता है। कविता संग्रह में जीवन दर्शन की गूढ़ता भी सहज सुघड़ रूप से परिलक्षित होती है।
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