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छोटी-बड़ी तीन झीलों और घने पेड़ों से घिरा हजारीबाग का झील क्षेत्र मानो शहर का दिल हो। लोग इसके आसपास रहते भी हैं, काम भी करते हैं। सुबह-शाम झील किनारे टहलकर स्वास्थ्य भी बनाते हैं। यहाँ झील पर बने रास्ते आने-जाने वालों के मार्गदर्शक बनते हैं। सबके हर तरह की भावनाओं की गवाही देते हैं यहाँ के घनी छाया वाले पेड़, शाँत झीलें, उनके किनारे बनी सीढ़ियाँ, और बैठने के लिए लगाये गये स्टील के बेंच।
शुभी और मालती ने भी यहाँ अपने-अपने दायरे में जीवन जिया है। जहाँ शुभी का जीवन सुखमय रहा है, वहीं मालती अपने जीवन में झंझावातों को ही झेलती आई है। फिर भी मालती में हिम्मत है। शुभी का साथ भी उसे सहारा देता है। शुभी और मालती के साथ-साथ झील पर टहलने वालों में गीता भाभी, रंजू, नीता, बेला, बदरी, बासुकी बाबू और कांता बाबू जैसे कई लोग हैं, जिनके व्यक्तित्व, स्वभाव की कमियाँ और खूबियाँ भी सामने आती रहती हैं। मानव मन के अनेक भावों को दिखाती है यह उपन्यासिका ‘कुछ दूर तक’।
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